रेलमंत्री नीतीश कुमार के पूर्व आप्त सचिव। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पूर्व प्रधान सचिव। पूर्व सांसद। पूर्व जेडीयू अध्यक्ष। पूर्व केंद्रीय मंत्री। आरसीपी सिंह के नाम से मशहूर जेडीयू नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह के जीवन में पूर्व शब्द का भंडार बढ़ गया है क्योंकि नाम के आगे लगे पूर्व को हटाने के लिए जो राजनीतिक ताकत चाहिए वो फिलहाल उनमें है नहीं और कोई राजनीतिक ताकत उनको अपने साथ लेकर किसी तरह की जोर आजमाइश में पड़ना नहीं चाहती।
सब कुछ अच्छा चल रहा था। दिल्ली में नीतीश कुमार के साथ पीएस के तौर पर आरसीपी सिंह का जो सफर शुरू हुआ था वो पटना में सीएम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी और फिर राजनीति में आने के बाद पहले सांसद, फिर जेडीयू अध्यक्ष और आखिर में केंद्रीय मंत्री। केंद्रीय मंत्री बनना आरसीपी सिंह के लिए आखिरी राजनीतिक दांव साबित हुआ। यहां से जो बात बिगड़ी तो फिर कभी बन नहीं पाई और एक साल के अंदर ही उन्हें मोदी सरकार से इस्तीफा देकर पूर्व मंत्री बन जाना पड़ा।
लेकिन कभी नीतीश कुमार के साथ साया की तरह रहने वाले आरसीपी सिंह के लिए एक साल में राजनीति बहुत बदल गई। कहां तो कभी उनके बॉस रहे नीतीश कुमार ने जब पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ा तो उनकी ताजपोशी की थी और कहां अब वो पार्टी में एक सामान्य कार्यकर्ता भर की हैसियत में रह गए हैं। नीतीश कुमार अब उनसे मिलने और बात करने से भी परहेज करने लगे हैं।
पार्टी में उनके बाद जेडीयू अध्यक्ष बने ललन सिंह ने उनके करीबियों को कायदे से किनारे लगा दिया है। पार्टी में जो भी नेता हैं और जिनको भविष्य की राजनीति करनी है वो अब आरसीपी सिंह से जितना हो सके दूर रहना और दिखना चाहते हैं। आरसीपी सिंह ने बहुत लोगों को टिकट दिया और दिलाया लेकिन वो सब जो जीत गए और वो भी जो हार गए, सब अब बस उनसे कन्नी काटने में अपनी भलाई समझते हैं।
और ये सारी दुर्गति हुई बस एक चीज से। मंत्रालय की चाहत, मंत्री बनने की ख्वाहिश। खराबी उसमें भी नहीं था लेकिन पार्टी और खास तौर पर नीतीश कुमार उनको अकेले मंत्री बनता नहीं देखना चाहते थे। यहीं चूक हुई और वो चूक बहुत भारी पड़ी। नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को मोदी कैबिनेट के विस्तार में जेडीयू के लिए ज्यादा से ज्यादा मंत्री पद की डील करने का जिम्मा सौंपा था।
आरसीपी ने बीजेपी से एक मंत्री पद पर डील कर ली और वो भी खुद की। इसके बाद के एक साल में और भी बहुत कुछ हुआ। नीतीश को लगने लगा कि आरसीपी जेडीयू से ज्यादा बीजेपी की परवाह कर रहे हैं और उसकी तरफ से खेल रहे हैं। जाति गणना, एनआरसी और बिहार के स्पेशल स्टेट्स जैसे मसलों पर आरसीपी की राय पार्टी की राय से अलग हो गई। बात बढ़ती गई। दर्द बढ़ता गया।
मौका आया राज्यसभा सांसद बनाने का तो पार्टी ने तीसरी बार भेजने से मना कर दिया। सांसदी गई तो मंत्रालय बचने का सवाल ही नहीं था। कह तो रहे थे आरसीपी सिंह कि पीएम का जो आदेश होगा, वो करेंगे। शायद उनके मन में रहा होगा कि बीजेपी कोई रास्ता निकाल देगी।
लेकिन अपने बर्थडे 6 जुलाई को ही उनके इस्तीफे से तय हो गया कि आरसीपी सिंह का आकलन और अनुमान सब गलत था। वो जिस भरोसे थे, वो उनकी चाहत भर थी। मंत्री बनने के चक्कर में एक साल में पूर्व मंत्री बन गए और साथ में नीतीश का भरोसा टूट गया और पार्टी का साथ भी।