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पटना | मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच कटु संबंध का गवाह तो समस्त राजनीतिक जगत है। 2020 विधान सभा चुनाव के बाद किसने किसको क्या कहा, इसकी तो एक डायरी तैयार की जा सकती है। बयानों के जरिए एक दूसरे का चारित्रिक दोहन ,एक दूसरे को नीचे दिखाने का खेल चलता रहा। ऐसा नहीं कि एक दूसरे की राजनीति की जमींदोज करने का प्रयास किसी एक ने किया। हां ,यह अपरोक्ष रूप से शुरुआत चिराग पासवान की तरफ से बिहार विधान सभा 2020 की एक चुनावी रणनीति के कारण हुआ । लेकिन यह विवाद एक बार फिर चरम पर है। लोजपा-रामविलास के प्रमुख चिराग पासवान एन डी ए में शामिल होने के बाद एक राजनीतिक बयान दे कर बिहार की राजनीति को गर्माहट दे दी है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इसे एक बड़ा पॉलिटिकल गेम माना जा रहा है।
दरअसल ,इस बार चिराग पासवान ने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर गंभीर आरोप लगाते यहां तक कह दिया कि वे मेरी राजनीतिक हत्या करना चाहते थे। इसका उदाहरण है जब नीतीश कुमार ने मेरी पार्टी को तोड़ दिया था और मुझे अकेले छोड़ दिया। तब चाचा पशुपति पारस मंत्री बन गए और अपने साथ सभी सांसदों को भी ले गए। नीतीश कुमार ने हमारे चाचा की एक पीठ पर हाथ रखकर मुझे अकेले करने की साजिश रच डाली थी। उनकी मंशा थी कि अकेले कर देंगे तो चिराग पासवान की सियासत खत्म हो जायेगी। ऐसा सोचने वाले नीतीश कुमार के अलावा अन्य पार्टियां भी थी कि चिराग पासवान की राजनीति की ही हत्या कर दी जाए। चिराग पासवान ने कहा कि मेरी राजनीति को खत्म करने के लिए लोगों ने बहुत प्रयास किया, बड़ी-बड़ी पार्टियां पीछे लगी हैं, लेकिन चिराग पासवान की राजनीति खत्म नहीं हुई, बल्कि और आगे बढ़ गई।
नीतीश कुमार को चिराग से क्यों है इतनी शिकायतराजनीति में हर कोई मदद के बदले मदद की उम्मीद रखता है। साल 2019 लोकसभा चुनाव के समय एनडीए की सीट शेयरिंग चल रही थी तो भाजपा लोजपा को सात सीट देने के पक्ष में नहीं थी, तब दिवंगत रामविलास पासवान जीवित थे। वो अचानक एक दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के यहां गए और सीट शेयरिंग को ले कर बातें की। कहा जाता है कि तब रामविलास पासवान को नीतीश कुमार का सहारा मिला । नीतीश कुमार ने लोजपा के लिए सात सीटों की पैरवी भी की। तब राजनीतिक समझ यह थी कि लोजपा और जदयू की सीटें जितनी ज्यादा होगी, भाजपा पर दबाव बनाने में उतनी ही मदद मिलेगी।
वर्ष 2020 विधान सभा चुनाव में लोजपा की चुनावी रणनीति ने नीतीश कुमार को काफी परेशान किया। दरअसल, तब लोजपा ने अकेले दम पर बिहार विधान सभा चुनाव लड़ने का मन बनाया। तब यह कहा जा रहा था कि यह सब भाजपा के इशारे पर हो रहा है। तब चिराग पासवान ने 134 विधान सभा क्षेत्र में अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए। चालाकी यह की कि लोजपा ने राजद और जदयू के खिलाफ ही उम्मीदवार खड़े किए। इस से हुआ ये कि जदयू जो विधान सभा चुनाव में कभी नंबर वन पार्टी थी, वह 43 विधायकों के साथ सिमट कर तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। लोजपा 134 सीट पर चुनाव तो लड़ी पर अपने लिए एक सीट ही निकल पाई। बाद में लोजपा का अकेला विधायक भी जनता दल यू में शामिल हो गया। यही से नीतीश कुमार और चिराग पासवान में 36 का आंकड़ा बन गया।
वरिष्ट पत्रकार आलोक पांडे कहते हैं कि राजनीतिक गलियारों की खबर यह है कि नीतीश और चिराग के बीच जो कुछ हुआ वह भाजपा के इशारों पर हुआ। कहा जाता है कि भाजपा की तब तात्कालिक मंशा जेडीयू को कमजोर करने की ही थी। वो हो भी गया, लेकिन लोजपा अपने लिए उतनी सीटे नहीं निकाल पाई कि जिससे वो और बीजेपी मिल कर सरकार बना पाएं। लेकिन यहीं से नीतीश और चिराग के बीच सियासत की तलवार खिंच गई।
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