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बिहार: अगले साल संभावित लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए (NDA) और ‘इंडिया’ दोनों गठबंधन अपनी रणनीति के मुताबिक योजना बनाकर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में जुट गए हैं. बीजेपी ने जहां संसद का विशेष सत्र बुलाकर महिला आरक्षण विधेयक पास करवाने की चाल चली, वहीं बिहार में जातीय गणना कराकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश की सियासत में नई लकीर खींच दी है. इसमें कोई शक नहीं कि नीतीश सामाजिक समीकरण के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. जोड़-तोड़ और समीकरण को साधते हुए नीतीश कम सीट होने के बावजूद भी बिहार में बतौर मुख्यमंत्री 18 साल से काबिज हैं।
जातीय जनगणना को भी इसी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।कहा जा रहा है कि नीतीश ने अगले लोकसभा और 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपने तरकश से अंतिम तीर चला दी है. नीतीश ने पहले बीजेपी के विरोधी दलों को एकजुट किया और फिर जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर दी. इसमें कोई दो मत नहीं कि बिहार में होने वाले चुनाव में जाति बहुत बड़ा रोल प्ले करता है. बीजेपी महिला आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे और धर्म के मुद्दे को लेकर अपनी रणनीति साफ कर चुकी है. माना जा रहा है कि नीतीश ने चुनावी जनगणना के मास्टर स्ट्रोक से न केवल बीजेपी को बल्कि अपने सहयोगी दलों को भी एक सीमा में बांध कर रखने की कोशिश की है. माना जाता है कि आरजेडी का वोट बैंक यादव-मुस्लिम समीकरण है ऐसे में नीतीश ने इस गणना के जरिए मुस्लिम मतदाताओं और अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) को भी साधने की कोशिश की है।
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Harrison
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