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बिहार। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के गैर समझौतावादी धारा के जांबाज सिपाही थे। उनकी नजर में स्वाधीनता का उद्देश्य देश को सिर्फ ब्रिटिश शासन-शोषण से मुक्त कराना ही नहीं बल्कि हर तरह से सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक शोषण से मुक्त समाज का निर्माण करना था। उन्होने आजादी के बाद एक ऐसे समाज के निर्माण की कल्पना की थी ,जिसमें जातिभेद,लिंग भेद ,साम्प्रदायिकता असहिष्णुता , और शोषण-उत्पीडण की कोई जगह न हो। आज जब हम नेताजी की 125 वीं जयंती मना रहे हैं।उनके आदर्शों और सिद्धांतों के अनुकरण की बात कर रहैं तो स्वाभाविक रूप से देश की वर्तमान सामाजिक ,राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य की चर्चा लाजिमी हो जाती है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आजादी के 75 सालों बाद भी देश की आम जनता आर्थिक ,राजनैतिक , सामाजिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में घनघोर संकट से गुजर रही है। साम्प्रदायिक उन्माद चरम पर है। अल्पसंख्यक,दलित प्रताड़ित किए जा रहे हैं।महिलाओं पर अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा है। शिक्षा के निजीकरण और बाजारीकरण के कारण शिक्षा आम आदमी की पहुंच से दूर हो चुकी है। खेती के अलाभकर हो जाने से किसान तंगहाल हैं। युवाओं के सामने बेरोज़गारी का संकट व्याप्त है। परिवार बिखर रहा है। बूढ़े मां-बाप को उनके ही संतान असहाय छोड़ दें रहे हैं। अपराध ,भ्रष्टाचार , बलात्कार,रिश्वतखोरी चरम पर है। छंटनी और बेरोज़गारी के आंकड़े खतरनाक स्तर पर पहुंच गये हैं।2020 के वैश्विक भूख सूचकांक में दुनिया के 107 देशों में भारत 94 वें स्थान पर था।हर साल 2 करोड़ लोग भूखे या अधभूखे रह जा रहे हैं। कल कारखानों के बंद हो जाने से बड़ी संख्या में मजदूर बेरोजगार हो चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भयावह गरीबी है। इस गरीबी के कारण ग्रामीण इलाके के युवाओं को मजदूरी के लिए पलायन करना पड़ रहा है।
दूसरी ओर बड़े पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की पूंजी लगातार बढ़ती जा रही है।1 प्रतिशत पूंजीपति देश के73 प्रतिशत सम्पदा के मालिक हैं।आर्थिक विषमता की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। यह सब सुभाष बाबू की परिकल्पना के ठीक विपरीत हो रहा है। सुभाषचंद्र बोस ने ऐसे भारत का सपना देखा था जिसमें सभी के लिए आर्थिक,नैतिक और सांस्कृतिक विकास के रास्ते खुले हों। सबों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं नि:शुल्क उपलब्ध हों। महिला और पुरुष के बीच किसी तरह का भेदभाव न हो। वे आजाद भारत में उन्नत नीति-नैतिकता , संस्कृति और मूल्यबोध के आधार पर नये समाज का निर्माण करना चाहते थे। आज नीति-नैतिकता ,मूल्यबोध और संस्कृति के क्षेत्र में व्यापक गिरावट आई है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के महान नायकों के व्यक्तित्व और चरित्र से युवा पीढ़ी को विमुख करने की घृणित साजिश की जा रही है।युवाओं को समाज विरोधी कार्यों , जीवन की व्यस्तताओं और खुदगर्जी में लिप्त रखा जा रहा है। उन्हें शराब ,ड्रग्स की आदत,जुआ ,ब्लु फिल्म,गंदे सेक्स साहित्य ,तथा यौनता के कुत्सित गड्ढों में डुबोया जा रहा है ताकि उनमे समाज के प्रति दायित्वबोध पैदा ही न हो सके। सुभाषचंद्र बोस ने कहा था कि युवाओं ने ही हर युग में ,हर देश में मुक्ति-इतिहास की रचना किया है। युवा आंदोलन का उद्देश्य ही होता है ,नये की तलाश करना , मनुष्य में उन्नत आदर्श पैदा कर उसे इंसानियत के उच्च शिखर पर ले जाना।नेताजी के लिए आजादी आंदोलन का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट था।अपने क्रांतिकारी मित्र बारीन्द्र घोष को 1930 में लिखे एक पत्र में नेताजी ने लिखा था' इतने सालों से मैं आजादी का अर्थ केवल राजनीतिक आजादी समझाता था लेकिन अब हमें घोषणा करनी होगी कि हम न केवल जनता को राजनैतिक बंधनों से मुक्त करेंगे,बल्कि हम उन्हें सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करेंगे।आजादी आंदोलन का उद्देश्य होगा राजनैतिक ,आर्थिक और सामाजिक — तीनों तरह के उत्पीड़न से जनता को मुक्त करना।इस तरह जब सभी प्रकार के बंधन तोड़ दिए जाएंगे, तब साम्यवाद के आधार पर एक नए समाज की स्थापना की जाएगी।' जाहिर है ,उनका उद्देश्य भारत में वर्ग विहीन स्वतंत्र समाज की स्थापना का था। आज उनकी 125वीं जयंती पर आत्मावलोकन करने की जरूरत है कि बीते 75 सालों में क्या हम नेताजी के सपने का भारत बनाने की दिशा में एक कदम भी आगे बढ़ सके हैं?
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