बिहार

नाट्य महोत्सव : प्रेम, दया और करुणा को नहीं समझने वाला हर कोई ''गिद्ध'' है

Shantanu Roy
24 Sep 2022 6:15 PM GMT
नाट्य महोत्सव : प्रेम, दया और करुणा को नहीं समझने वाला हर कोई गिद्ध है
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बेगूसराय। बिहार की सांस्कृतिक नगरी बेगूसराय में तीन दिवसीय फैक्ट नाट्य महोत्सव शुरू हो गया। नाटक की पहली रात फैक्ट के नवोदित कलाकारों द्वारा प्रवीण कुमार गुंजन के निर्देशन में विजय तेंदुलकर लिखित चर्चित नाटक ''गिद्ध'' का मंचन किया गया। मराठी में गिधाड़े नाम से लिखे गए इस नाटक का हिंदी रूपांतरण वसंत देव ने किया है। विजय तेंदुलकर ने 1961 में जब यह नाटक लिखा था, उस समय घर परिवार में पुरुषों का वर्चस्व कायम था और स्त्री की स्थिति ठूंठ भावों की कठपुतली की तरह थी। गिद्ध एक परिवार की कहानी है, जिसे नाटक देखने के बाद परिवार शब्द से संबोधित करना मुश्किल है। पापा, उनके दो बेटे- रामनाथ और उमानाथ, बेटी माणिक प्रचलित भाषा में उनका नाजायज बेटा रजनी नाथ और रमानाथ की पत्नी रमा। रमा और रजनीनाथ को छोड़कर घर के सभी लोग निहायत स्वार्थी, लालची और बदतमीज हैं। ना किसी को जुबान की फिक्र है, ना भावनाओं की। रमानाथ और उमानाथ खास तौर से वे पात्र हैं, जिनके लिए मंचन के दौरान नाटक का शीर्षक सार्थक दिखाई देता रहा। नाटक ने एक ओर समाज में पारिवारिक मूल्यों के खत्म होते दौर को दिखाया तो दूसरी ओर रमा जैसी कोमल हृदय वाली महिला की इंसान रूपी गिद्धों के बीच जिंदगी बसर करने की विवशता की कहानी भी। पैसे और ऐशो-आराम की फिक्र में पहले अपने पिता को मारकर घर से निकल जाने पर मजबूर कर देते हैं और बाद में अपनी बहन माणिक के प्रेम प्रसंग पर भी अपने लालच की परछाई डालने से नहीं हिचकिचाते। इन सभी कुचक्रों के बीच फंसी है, घर में चुप-चाप सब कुछ सहती रमा और बाहर गैराज में रहने वाला रजनीनाथ।
रजनीनाथ, रमानाथ एवं उमानाथ और माणिक का सौतेला भाई है, इसलिए इन तीनों ने उसे अपने जीवन से अलग कर रखा है। रमा रजनीनाथ के लिए घरवालों से छिपकर कभी चाय ले आती तो कभी उसका हाल-चाल जान आती। रमा और रजनीनाथ एक दूसरे के लिए इस घर में रह पाने का एकमात्र कारण दिखाई देते हैं। घरेलू हिंसा से लेकर, सामाजिक बंधनों की परवाह नहीं करते हुए दो इंसानों के बीच स्वाभाविक रूप से पनप जाने वाले प्रेम तक जाने वाले इस नाटक ने फैक्ट स्पेस में उपस्थित दर्शकों के मन को झकझोर दिया। दिखा दिया कि यह हर घर की कहानी है। प्रेम, दया और करुणा को नहीं समझने वाला हर कोई गिद्ध है। द फैक्ट आर्ट एंड कल्चरल सोसाइटी की इस प्रस्तुति के दौरान रमाकांत की भूमिका में मो. रहमान, रमा बनी कृष्णा सोनिका, उमाकांत बने मो. शमसे आलम, माणिक के रूप में प्रिया कुमारी, रजनीनाथ बने वैभव कुमार और पापा बने भूपेन्द्र तिमसिना ने शानदार अभिनय किया। चाचा के रूप में सुशील कुमार को भी कम नहीं आंका जा सकता है। साउंड चन्दन कुमार कश्यप, लाइव तबला वादन दीपक कुमार, प्रकाश परिकल्पना चिन्टू कुमार, कॉस्टयूम खुशबू कुमारी एवं रिमझिम कुमारी, रूपसज्जा चन्दन कुमार वत्स, सेट्स कुमार अभिजीत, पोस्टर भूषण एस. पाटिल एवं संयोजन मो. रहमान का था। उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए कुमार अभिजीत मुन्ना ने कृष्ण की चेतावनी का सस्वर पाठ कर माहौल को दिनकरमय में बना दिया। महोत्सव का उद्घाटन करते हुए नाट्य समीक्षक और दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के सहायक प्रवक्ता डॉ. ममता धवन ने कहा कि नाटक समूह में खेलने और देखने वाली विधा है और यह समय की सच्चाई से अवगत कराता है। बेगूसराय का रंगमंच पूरे देश में अधिक उम्मीद से अधिक लोकप्रिय है। फैक्ट ने देश ही नहीं विदेश में एक सौ से भी अधिक शो किए हैं, जिसकी चर्चा हर ओर होती रहती है, यह महोत्सव भी एक नया संदेश देगा।
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