तीन खेमे में बंटे नगर निगम के पार्षद, कहां बैठेंगे वार्ड पार्षद
नालंदा न्यूज़: देखते-देखते 15 साल गुजर गये. इतने साल में भी नगर निगम में वार्ड पार्षदों के लिए बैठक हॉल का निर्माण नहीं हो पाया है. वार्ड पार्षदों के लिए निगम कार्यालय में कोई कमरा नहीं है. अब तो वार्ड पार्षदों की संख्या 46 से बढ़कर 51 हो गया है. वार्ड पार्षद एक अदद हॉल के लिए तरस रहें हैं.
हालांकि, मामले को कई बार लोग सदन में भी उठा चुके है. फिर भी प्रयास नहीं किया गया. यही कारण है कि नगर निगम में जरूरी काम के लिए आने वाले पार्षदों को बैठने के लिए कर्मचारी या फिर मेयर-उपमेयर के चैंबर में आश्रय लेना पड़ता है. मेयर-उपमेयर के चैंबर में अगर ताला लगा हो तो फिर वार्ड पार्षदों की फजीहत तय है. 2007 से लेकर अब तक तीन मेयर का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. कुछ पार्षदों का कहना है कि नगर निगम में जगह व फंड की कमी नहीं है. लेकिन, सामूहिक प्रयास का अभाव हमेशा रहा है. अपने स्वार्थ के कारण सावर्जनिक कार्यों को प्राथमिकता नहीं दिया गया. अब देखनना यह है कि नई मेयर इसके लिए क्या पहल करतीं हैं.
गुटबाजी हुई तेज कुछ लोगों को मलाल है कि शपथ के दिन उच्च पद के प्रतिनिधि अपने-अपने चैंबर में चले गये कुछ को छोड़कर शेष को चैंबर में आने के लिए आमंत्रित भी नहीं किया गया.
यही कारण है कि गुटबाजी और तेज हो गयी है. 51 वार्ड पार्षदों में से एक खेमे में 18 दूसरे में 8 और तीसरे में 10 पार्षद हैं. शेष लोग मूकदर्शक बने हुए है. और तो और पुराने लोग चुनाव हार गये हैं वे अब मुख्य व उपमुख्य पार्षद के सलाहकारों की टीम में शामिल हो गयें हैं.
नगर निगम बोर्ड का गठन के बाद ही राजनीतिक हलचल शुरू हो गयी. प्रतिनिधि के प्रतिनिधियों के हस्तक्षेप शुरू होने से राजनीतिक माहौल ठंड में भी गर्मा गया है. मेयर-उपमेयर समेत 32 महिलाओं की टीम है. ऐसे में उनके पति व परिवार के सदस्यों की दखल अंदाजी तय है. शपथ के दिन ही पार्षद तीन खेमे में विभक्त दिखें. तीनों अपनी टोली के साथ ही चहलकदमी करते रहें.