बिहार
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में मानसिक तनाव प्रबंधन कार्यशाला आयोजित
Shantanu Roy
24 Sep 2022 5:57 PM GMT
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बड़ी खबर
सहरसा। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बनगांव रोड स्थित स्थानीय सेवा केंद्र शान्ति अनुभूति भवन में शनिवार को तनाव प्रबंधन कार्यशाला का आयोजन किया गया। माउंट आबू से पधारे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वक्ता राजयोगी आत्मप्रकाश भाई ने विषय पर अपना संबोधन प्रस्तुत किया। इसके पूर्व कार्यशाला का विधिवत् उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन द्वारा राजयोगी आत्मप्रकाश भाई, समस्तीपुर से पधारे कृष्ण भाई, सेवा केंद्र प्रभारी स्नेहा बहन व सुपौल सेवा केंद्र प्रभारी शालिनी बहन ने सामूहिक रूप से किया। अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वक्ता भ्राता आत्मप्रकाश ने 90 देशों में आध्यात्मिक ज्ञान एवं राजयोग की पताका फहराते हुए लाखों लोगों को स्वस्थ एवं खुशनुमा जीवन जीने की कला सिखाई है। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एमएससी की पढ़ाई पूरी की और विश्व विद्यालय के टॉपर होने के साथ-साथ गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे। परमात्म-प्राप्ति के बाद उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ईश्वरीय सेवा में समर्पित कर दिया।विषय पर प्रभावशाली प्रस्तुति देते हुए आत्मप्रकाश भाई ने कहा कि तनाव शब्द में चार अक्षर आते हैं। इन चार अक्षरों में ही तनाव का कारण निहित है। अर्थात् तन। जब हम तन पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं तो तनाव का आह्वान करते हैं। तन के साथ-साथ मन पर भी ध्यान देना उतना ही आवश्यक है। ऐसा करने से हम स्वयं को बहुत हद तक तनावमुक्त रख सकते हैं। दूसरा अक्षर है अर्थात् नकारात्मकता। आज की डिजिटल एज में डिजिटल उपकरणों के अनावश्यक उपयोग से हम स्वयं को नकारात्मकता के अधीन करते जा रहे हैं। जहां नकारात्मकता है वहां तनाव है। तीसरा अक्षर है आ अर्थात् आमदनी। लोग आमदनी के पीछे दिन-रात भाग रहे हैं।
यह भागमभाग उन्हें तनावग्रस्त करती जा रही है। धन कमाते हुए ध्यान रहे कि धन हमारे लिए है हम धन के लिए नहीं। चौथा अक्षर है व अर्थात् वचन। हमारे वचन ही हमें व औरों को सुख या दुःख की अनुभूति कराते हैं। हमारे द्वारा बोले गए व्यर्थ, अनावश्यक या दु:खदायी बोल हमें तनाव की मकड़जाल में फंसा देते हैं। तनाव से स्वयं को सदा सदा के लिए मुक्त करने के लिए राजयोग रामबाण औषधि है। लाखों राजयोगी भाई-बहन इस विधि द्वारा अपने जीवन को सब कुछ करते हुए तनावमुक्त एवं खुशनुम: अनुभव करते हैं। राजयोगी भ्राता आत्मप्रकाश ने कहा कि तनाव अर्थात् परिस्थिति बट्टा मनोस्थिति। परिस्थिति अर्थात् जो बातें लोगों के द्वारा समय-समय पर हमारे पास आती रहती हैं।जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। लेकिन मनोस्थिति तो हमारे नियंत्रण में हो सकती है। हम मनोस्थिति के बजाय परिस्थितियों पर नियंत्रण करने की कोशिश करते हैं। इससे हमारा तनाव घटने की बजाय बढ़ता रहता है। हमारी मनोस्थिति हमारे नियंत्रण में होगी तो हमारी खुशी और शक्ति दोनों में ही वृद्धि होगी और हम किसी भी प्रकार की परिस्थिति को आसानी से संभाल सकेंगे। इसलिए किसी ने बहुत सही कहा है कि शक्तिशाली लोगों के लिए परिस्थिति एक अवसर होती है।साधारण लोगों के लिए चुनौती और कमजोर लोगों के लिए समस्या का पहाड़ होती है। तनावग्रस्त मन हमारे शरीर को रोगग्रस्त करता है। जब हम तनाव में होते हैं तो शरीर में स्ट्रेस हार्मोन्स का निर्माण होता है। शरीर की अरबों-खरबों कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं। इसके विपरीत जब हम खुश रहते हैं तो हैप्पी हार्मोंस का निर्माण होता है ।जो हमारे शरीर को तंदुरुस्त और स्फूर्त रखते हैं। आज हम तनाव मुक्ति के लिए बहुत कुछ सुनते-पढ़ते हैं।लेकिन इससे बहुत ज्यादा फायदा नहीं होता है। युक्ति अर्थात् ज्ञान के साथ-साथ शक्ति की भी जरूरत है, तब हमें चिंता-तनाव-दु:ख से मुक्ति मिल सकती है। हमें शक्ति मिलती है राजयोग से। इस विधि से हमारा बुद्धियोग परमपिता परमात्मा के साथ जुड़ता है और आत्मा शक्तिशाली बनती है। उन्होंने विषय पर संबोधन के पश्चात् सभी को राजयोग की बहुत सुंदर अनुभूति भी कराई। उन्होंने समस्त नगरवासियों से राजयोग की विधि सीखकर इसका नियमित रूप से अभ्यास करने का आह्वान किया। तीन सत्रों में इस कार्यशाला का आयोजन किया गया।इससे पूर्व स्थानीय सेवाकेंद्र प्रभारी स्नेहा बहन ने राजयोगी भ्राता आत्म प्रकाश को पुष्पगुच्छ देकर व अपने सुंदर शब्दों की माला पहनाकर उनका व सभी अतिथियों एवं कार्यक्रम में शामिल भाई-बहनों का स्वागत किया।कार्यक्रम में सहरसा, सुपौल, मुरलीगंज, सिमरी बख्तियारपुर सहित अनेक आसपास के स्थानों से सैकड़ों भाई-बहनों ने कार्यक्रम का लाभ लिया।कार्यक्रम में मुख्य रूप से समाजसेवी राधेश्याम अग्रवाल, प्रमुख उद्योगपति सुशील जायसवाल, प्रमुख व्यवसायी अर्जुन दहलान, जयप्रकाश भाई अवधेश भाई, सदानंद भाई, नवल किशोर भाई, शत्रुघ्न भाई, सत्येंद्र भाई, अशोक भाई आदि उपस्थित थे।
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