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बिहार कई स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा मेडिकल कचरे को लेकर काफी उदासीनता बरती जा रही है. शायद उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि कचरे का निस्तारण सही तरीके से नहीं करने पर कानून कार्रवाई का भी प्रावधान है या फिर जिम्मेदार विभाग व एजेंसियों की उदासीनता के कारण स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा जानबूझ कर मेडिकल कचरों का निस्तारण करने के बदले उसे सामान्य कचरों के साथ सड़क किनारे फेंक दिया जाता है. बावजूद अब तक किसी भी असपतालों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई है.
बायोमेडिकल कचरे का सही निस्तारण नहीं करने पर कार्रवाई का है प्रावधान बायोमेडिकल कचरे का सही ढंग से निपटान करने के लिये कानून तो बने हैं, लेकिन उनका पालन ठीक से नहीं होता है. इसके लिये केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिये बायोमेडिकल वेस्ट नियम, 1998 बनाया है. बायोमेडिकल वेस्ट अधिनियम 1998 के अनुसार निजी व सरकारी अस्पतालों को इस तरह के चिकित्सीय जैविक कचरे को खुले में या सड़कों पर नहीं फेंकना चाहिए. ना ही इस कचरे को म्यूनीसिपल कचरे में मिलाना चाहिए. साथ ही स्थानीय कूड़ाघरों में भी नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इस कचरे में फेंकी जानी वाली स्लाइन बोतलें और सिरिंज कबाड़ियों के हाथों से होती हुई अवैध पैकिंग का काम करने वाले लोगों तक पहुंच जाती है. बायोमेडिकल वेस्ट नियम के अनुसार, इस जैविक कचरे को खुले में डालने पर संबंधित अस्पतालों के खिलाफ जुर्माने व सजा का भी प्रावधान है. कूड़ा निस्तारण के उपाय नहीं करने पर पांच साल की सजा और 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है. नियम-कानून तो है, लेकिन जरूरत है, इसको कड़ाई से लागू करने की. नियम के अनुसार, अस्पतालों में काले, पीले व लाल रंग के बैग रखने चाहिए. ये बैग अलग तरीके से बनाए जाते हैं, इनकी पन्नी में एक तरह का केमिकल मिला होता है, जो जलने पर नष्ट हो जाता है तथा दूसरे पॉलिथिन बैगों की तरह जलने पर सिकुड़ता नहीं है.
इसीलिये इस बैग को बायोमेडिकल डिस्पोजेबल बैग भी कहा जाता है.
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