बिहार

ढाई हजार की जगह पांच वर्षों में 410 ही खुल पाए केंद्र

Harrison
1 Sep 2023 9:46 AM GMT
ढाई हजार की जगह पांच वर्षों में 410 ही खुल पाए केंद्र
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बिहार | राज्य के गरीब मरीजों को सस्ती दवा मिलने में फार्मासिस्टों की कमी बड़ी बाधा बन रही है. फार्मासिस्टों की कमी और सही जगह उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण राज्य में जनऔषधि केंद्र जैसी सस्ती दवा दुकानें नहीं खुल पा रही हैं. एक जनऔषधि केंद्र में सामान्य दवा दुकानों के मुकाबले पांच से छह गुनी सस्ती दवाइयां मरीजों को मिल जाती हैं. राज्य में कुल 410 जनऔषधि केंद्र खुले हैं. इन केंद्रों में सस्ती दवाइयों के साथ ही डायबीटिज, कैंसर, हृदय रोग से लेकर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य से जुड़ी 1800 प्रकार की दवाइयां और 285 प्रकार की सर्जिकल सामग्री भी सस्ती दर पर मरीजों को मिलने लगी हैं. केंद्र के नोडल पदाधिकारी अशोक कुमार द्विवेदी और कुमार पाठक की मानें तो अकेले बिहार में प्रति वर्ष 20 से 22 करोड़ रुपये की बचत मरीजों को जनऔषधि केंद्रों से होती है. कुमार पाठक ने बताया कि फार्मासिस्टों की कमी की वजह से कई जिलों में नए जनऔषधि केंद्र नहीं खुल पा रहे हैं. बिहार फार्मासिस्ट एसोसिएशन के अनुसार राज्य में ढाई हजार जनऔषधि केंद्र खुलने थे. लेकिन पिछले पांच वर्षों में अबतक 410 ही खुल पाए हैं. वहीं पटना में 66 लोग दुकान खोलने का लाइसेंस ले चुके हैं. कई लोग को अनुमति मिलने के बाद भी सही जगह उपलब्ध नहीं होने अथवा फार्मासिस्ट की कमी से जनऔषधि केंद्र नहीं खोल पा रहे हैं. कुमार पाठक ने बताया कि राज्य में फार्मासिस्टों की भारी कमी है. बिहार खुदरा दवा दुकानदार संघ के संजय भदानी ने बताया कि हर साल मात्र 300 नए फार्मासिस्ट अलग-अलग कॉलेजों व संस्थानों से तैयार हो रहे हैं . राज्य में कुल रजिस्टर्ड फार्मासिस्टों की संख्या पांच हजार से भी कम है. जबकि दवा दुकानों की संख्या 66 हजार 200 है. पटना में अकेले पटना में कुल दुकानों की संख्या 6600 से अधिक है.
राज्य में एक दवा की दुकान के पर एक फार्मासिस्ट का होना जरूरी है. ऐसे में एक-एक फार्मासिस्ट का कई दुकानों में लाइसेंस लगा है. कुछ लोग दूसरे राज्यों से फार्मासिस्ट का लाइसेंस लेकर दवा की दुकान चला रहे हैं. बिहार खुदरा दवा दुकानदार संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि अंग्रेजों के काल से बना यह नियम अब अप्रासंगिक हो गया है. पहले दवा दुकानदार ही अलग-अलग दवाइयों का मिश्रण तैयार करते थे. ऐसे में उनका फार्मासिस्ट होना जरूरी था. अब तो डॉक्टरों की लिखी दवा सिर्फ पढ़कर देना होता है. ऐसे में फार्मासिस्ट की जरूरत अब दवा दुकानों से ज्यादा दवा कंपनियों के लिए रह गई है.
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