पटना न्यूज़: बिहार की खेती पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है. बाढ़ और सुखाड़ की मार बिहार की खेती पर बढ़ गई है. रही-सही कसर ओलावृष्टि पूरी कर दे रही है. फसल चक्र प्रभावित हो रहा है. लागत बढ़ गई है. इससे फसलों की उत्पादकता घट गई है.
जलवायु परिवर्तन के असर से ही अत्यधिक गर्मी, लू, अत्यधिक ठंड, पाला और अतिबारिश हो रही है. बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के मौसम कृषि वैज्ञानिक डॉ. सुनील कुमार का कहना है कि इनसे फसलों को नुकसान पहुंच रहा है. तापमान और आर्द्रता बढ़ने से खरीफ, रबी फसलों में नए-नए कीड़े पनपने लगे हैं. गर्म जलवायु में कीट-पतंगों की प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है. जिससे कीटों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है. इन कीड़ों को मारने के लिए ज्यादा रसायन का इस्तेमाल करना पड़ रहा है. सबसे बड़ा असर मिट्टी पर पड़ा है. जलस्तर गिरने से मिट्टी की नमी कम हो गई है. इस कारण सिंचाई की जरूरत बढ़ गई है. ज्यादा खाद और खरपतवार नाशक डालने से पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है. अब रसायनिक दवा का असर कम होने लगा है. यही कारण है कि राज्य के 190 गांवों में जलवायु अनुकूल खेती कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं.
जलवायु अनुकूल खेती कार्यक्रम के वरीय प्रभारी और कृषि विभाग के संयुक्त सचिव डॉ. अनिल कुमार झा का कहना है कि हिमालय की तराई क्षेत्र इलाके में होने के चलते बिहार में बाढ़ पर नियंत्रण नहीं हो पाया है. दक्षिण बिहार में सुखाड़ है. इससे फसलों को नुकसान हो रहा है. इसलिए प्राकृतिक खेती के साथ ही समय से बुआई पर जोर दिया जा रहा है ताकि जलवायु परिवर्तन का सामना किसान कर सकें.
बढ़ रहा सहायता अनुदान
खेती किसानी पर मौसम की मार को इस लिहाज से भी समझा जा सकता है कि फसल सहायता अनुदान लगातार बढ़ रहा है. आंकड़ों को देखें तो फसल नुकसान होने पर 600 से एक हजार करोड़ रुपये तक अनुदान दिया जा रहा है. वर्ष 2018-19 से अब तक करीब तीन हजार करोड़ रुपये का अनुदान सरकार दे चुकी है. यानि बाढ़, सुखाड़ और ओलावृष्टि के चलते खड़ी फसलों को नुकसान ज्यादा हो रहा