बिहार
कोरोना की तीसरी लहर में बिहार के अस्पतालों में डॉक्टर नहीं लिख रहे रेमडेसिविर, एक फीसदी भी इस्तेमाल नहीं
Renuka Sahu
17 Jan 2022 1:51 AM GMT
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फाइल फोटो
स्वास्थ्य विभाग द्वारा बिहार के अस्पतालों में रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति के बावजूद इसकी मांग नहीं हो रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्वास्थ्य विभाग द्वारा बिहार के अस्पतालों में रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति के बावजूद इसकी मांग नहीं हो रही है। अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों के लिए डॉक्टर भी रेमडेसिविर इंजेक्शन का उपयोग नहीं कर रहे है। सूत्रों के अनुसार राज्य में कोरोना की तीसरी लहर के दौरान एक फीसदी भी रेमडेसिविर का उपयोग नहीं हुआ है। जबकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोरोना की दूसरी लहर के दौरान से ही सर्वाधिक केस लोड के आधार पर इस दवा का आवंटन सभी चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पतालों और जिलों के सिविल सर्जन को आवंटित की जा रही है।
24,598 वॉयल रेमडेसिविर अस्पतालों को दिए गए
हाल ही में कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए जरूरी चार प्रकार की दवाओं की आपूर्ति सरकारी अस्पतालों में की गयी है। इनमें इनोएक्सपीरिन इंजेक्शन 40 एमजी, माइथी प्रीडनिसोलोन एसेट, 40 एमजी, डेक्सामेथाजोन सोडियम फॉस्फेट इंजेक्शन 4 एमजी के साथ ही रेमडेसिविर इंजेक्शन 100 एमजी का भी दिया गया है। इनमें सिर्फ रेमडेसिविर के 24,598 वॉयल अस्पतालों को आपूर्ति की गयी है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राज्य में रेमडेसिविर की मांग संक्रमण के साथ-साथ तेजी से बढ़ी थी। सरकारी व निजी अस्पतालों में डॉक्टर भी संक्रमितों के इलाज के लिए मरीज के पुर्जा पर रेमडेसिविर लाने को धड़ल्ले से लिख रहे थे। एक-एक वॉयल इंजेक्शन को लेकर मरीजों के परिजन भटकते रहते थे। दवा मंडी में इसकी कालाबाजारी शुरू हो गयी थी और 25 से 50 हजार रुपये में एक-एक वॉयल दवा की खरीद-फरोख्त होने लगी थी। तब, परेशान होकर राज्य सरकार ने रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति को लेकर राशनिंग व्यवस्था शुरू की थी। रेमडेसिविर निर्माता कंपनियों से एजेंसी के माध्यम से सीधे अस्पतालों को रेमडेसिविर की आपूर्ति की जाने लगी।
पटना एम्स भी इस बार नहीं कर रहा उपयोग
कोरोना मरीजों के इलाज के क्रम में इस बार पटना एम्स प्रशासन भी रेमडेसिविर का उपयोग नहीं कर रहा है। एम्स, पटना के नोडल अधिकारी डॉ. संजीव कुमार ने बताया कि गंभीर मरीजों के लिए रेमडेसिविर का उपयोग नहीं हो रहा है। जो थोड़े कम गंभीर (मॉडरेट) मरीज है, उन पर भी स्थिति के अनुसार ही इसके उपयोग किए जा रहे हैं।
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