बिहार

रुपए व समय बचाने के चक्कर में सेहत कर रहे खराब

Harrison
14 Sep 2023 9:56 AM GMT
रुपए व समय बचाने के चक्कर में सेहत कर रहे खराब
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बिहार | आदमपुर निवासी किरन कुमारी एक बैंक कर्मी हैं. इन्हें कई बार खाना बनाने का समय न मिल पाता था तो ये समय बचाने के लिए रेडी टू ईट फूड आईटम (पैकेज्ड फूड) बना लेती थी. कई दिनों से ये खुद को अस्वस्थ महसूस करने लगी तो इन्होंने तिलकामांझी स्थित एक वरीय
फिजिशियन से दिखाया. डॉक्टर ने पैकेज्ड फूड का इस्तेमाल बंद करने की सलाह दी. दो दिन बाद से किरन को राहत मिलने लगी. कॉलेज स्टूडेंट श्रीश शहर के पीजी हॉस्टल में रहते हैं. ये सस्ता व समय बचाने के लिए रेडी टू ईट खाद्य सामग्रियों को खाने का इस्तेमाल करने लगे. बीते दिनों इन्हें समस्या (त्वचा में लाल चकत्ता व पेट में दर्द) हुई तो इन्होंने डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर की सलाह पर इन्होंने रेडी टू ईट फूड पैकेज्ड का इस्तेमाल बंद किया. एक सप्ताह में इनकी समस्या दूर हो गई. अब ये टिफिन वाला खाना खाते हैं.
भागलपुर शहर बाहर से आकर यहां व इसके आसपास के क्षेत्रों में नौकरी करने वालों से लेकर पढ़ाई करने वालों के लिए एक मुफीद ठिकाना है. शहर में रहने से लेकर खाने तक का बेहतर बाजार उपलब्ध है, जिससे बड़ी संख्या में युवा व किशोर यहां पर रहकर नौकरी से लेकर पढ़ाई करते हैं. चूंकि पीजी से लेकर किराए के मकान में रहने वालों लोगों के लिए रेडी टू ईट पैकेज्ड फूड सस्ता एवं जल्दी पककर तैयार होने वाला होता है, इसलिए लोग इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से करने लगे हैं. पैकेज्ड फूड 30 से 120 रुपए में उपलब्ध हो जाते हैं और इससे समय की बचत होती है. आमतौर पर कॉलेज जाने वाल छात्र व घर से दूर रहने वाले युवाओं में इसकी ज्यादा मांग है. बीते तीन साल विशेषकर कोरोना के बाद तो इसके कारोबार में करीब तीन गुने तक की वृद्धि हो चुकी है.
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