बिहार

जिवतिया जीवित्पुत्रिका व्रत की कलयुग में महत्वपूर्ण महिमा

Shantanu Roy
18 Sep 2022 5:32 PM GMT
जिवतिया जीवित्पुत्रिका व्रत की कलयुग में महत्वपूर्ण महिमा
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बगहा। अपनी संतानों के स्वास्थ्य व दीर्घायु जीवन के लिये रविवार को जिवतिया यानी जीवित्पुत्रिका व्रत के अवसर पर अभिभावकों खासकर माताओं ने उपवास रखा। पर्व के संदर्भ में पंडित अर्जुन चौबे बताते हैं कि अश्वनी पक्ष के प्रदोष काल मे व्रती संकल्प लेकर उपवास रखते हैं । संतानों के दीर्घ जीवन की कामना हेतु यह व्रत निर्जला पूरा किया जाता। कृष्णपक्ष के सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक यह व्रत चलता है । अंत में पारन के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है ।
शास्त्रों के मुताबिक महाभारत युद्ध में अपने पिता की छल से हुई हत्या के कारण अश्वत्थामा काफी गुस्से में था । बदला लेने की नीयत से वह एक रात्रि पांडवों के शिविर में घुस कर किन्हीं अन्य पाँच व्यक्तियों की हत्या उन्हें पांडव समझ कर दी । इसके अलावा अर्जुन की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या भी उसी ने की थी । तब अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना कर उसके सिर से मणि निकल लिया था । फिर श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों के बदले उत्तरा के गर्भस्थ शिशु को फिर से जीवनदान दिया था । तब से जीवित्पुत्रिका व्रत यानी जितिया का पर्व मनाया जाता है। जिसकी महिमा कलयुग में भी कायम बताई जाती है । बहरहाल जितिया पर्व पर पूरे विधिविधान के साथ व्रत को सम्पन्न किया जा रहा है । निर्जल उपवास के साथ अपनी संतानों के मंगलकामना के लिये व्रती ईश्वर साधना में रहें।
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