गांवों के मुकाबले शहरी बच्चों में टाइप टू मधुमेह का ज्यादा प्रकोप
पटना: शहर से लेकर गांव तक के बच्चों में मधुमेह का प्रकोप तेजी से फैल रहा है. लेकिन गांवों के मुकाबले शहरी बच्चों में इसका प्रकोप अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा है. डायबिटीज क्लिनिकों और अस्पतालों के मधुमेह विभाग में टाइप वन से पीड़ित बच्चों में शहरी और ग्रामीण दोनों इलाके की संख्या तुलनातमक रूप से लगभग समान रहती है.
वहीं टाइप-2 मधुमेह पीड़ितों में शहरी बच्चों की संख्या अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. रिसर्च सोसाइटी फॉर स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया (आरएसएसडीआई) के बिहार सचिव डॉ. सुभाष कुमार का कहना है कि अभी तक यह स्पष्ट अध्ययन नहीं है कि राज्य के किस जिले के किस इलाके में मधुमेह पीड़ित बच्चों की कितनी संख्या है लेकिन अलग-अलग अस्पतालों, मधुमेह के विशेषज्ञ चिकित्सकों से मिली जानकारी के मुताबिक शहरी और ग्रामीण दोनों इलाके के किशोरों में टाइप 2 डायबिटीज का प्रकोप कुछ बढ़ता दिख रहा है.
शहरी बच्चों में अनियमित खानपान, कोल्ड ड्रिंक्स-एनर्जी ड्रिंक्स का धड़ल्ले से सेवन, कम शारीरिक व्यायाम, मैदान से दूरी, टीवी-मोबाइल पर ज्यादा समय देना, पढ़ाई का तनाव इसका बड़ा कारण है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों में भी खानपान संबंधी लापरवाही, पारिवारिक इतिहास, कम श्रम और मैदान से दूरी मधुमेह का बड़ा कारण है. उन्होंने बताया कि उच्च कैलोरी व रसायनयुक्त फास्ट फूड, चाउमिन, पिज्जा, बर्गर, पैकेज्ड चिप्स, स्नैक्स, कोल्ड ड्रिंक्स की पहुंच गांवों में भी हो गई है. यह भी डायबिटीज बढ़ने का बड़ा कारण बन गया है.
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार, डायबिटीज विशेषज्ञ डॉ. मनोज कुमार सिन्हा, डॉ. अमित कुमार ने बताया कि टाइप वन डायबिटीज का बड़ा कारण अनुवांशिक है. ऐसे बच्चों में इंन्सुलिन नहीं बनता है. ऐसे बार-बार बीमार पड़ने लगते हैं और बेहद कमजोर होने लगते हैं. जब जांच की जाती है तो डायबिटीज का पता चलता है. शहरों में चिकित्सा सेवा कुछ बेहतर होने से ऐसे बच्चों की पहचान जल्दी हो जाती है लेकिन ग्रामीण इलाके में देरी से पहचान होने से बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास पर भी असर पड़ता है. मुफ्त इंसुलिन के लिए पीएमसीएच में निबंधित 485 बच्चों में से 300 के लगभग शहरी क्षेत्र के हैं. वहीं न्यू गार्डिनर में 26 निबंधित में लगभग 18 शहरी और 8 ग्रामीण इलाके से आते हैं.
पीएमसीएच के शिशु रोग विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रो. एके जायसवाल ने कहा कि जन्म से छह माह तक स्तनपान करने वाले बच्चे में डायबिटीज, हार्ट अटैक जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है. कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अध्ययन में यह साबित भी हो चुका है. उन्होंने कहा कि बच्चों और बड़ों में डायबिटीज के अलग-अलग लक्षण होते हैं. बड़ों में मोटापा, अत्यधिक वजन प्रमुख लक्षण हैं. वहीं बच्चों में खूब भूख-प्यास लगना, बार-बार पेशाब जाना आदि लक्षण हैं. बार-बार खाने और ज्यादा पानी पीने के बावजूद बच्चे का वजन कम होना और कमजोर दिखने लगे तो उन्हें तुरंत डॉक्टर से दिखाना चाहिए.