गोपालगंज: अगस्त व सितंबर महीने में जिले में विगत कई वर्षों से डेंगू का प्रकोप होता है. पिछले वर्ष भी पांच सौ से अधिक लोग इसकी चपेट में आए थे. मीरगंज में कम से कम छह लोगों की मौत हुई थी. बावजूद इसके सदर अस्पताल में डेंगू से निपटने के इंतजाम आधे-अधूरे हैं.
अस्पताल में डेंगू के मरीजों को भर्ती करने के लिए स्पेशल वार्ड नहीं बन सका है. हालांकि जांच किट डेंगू एनएस 1 व एंटीजन किट की व्यवस्था की गई है. प्लेट्लेस चढ़ाने का कोई प्रबंध नहीं है. सदर अस्पताल के डीएस व वरिष्ठ डॉक्टर डॉ शशि रंजन ने बताया कि जांच की व्यवस्था है. अब तक डेंगू के मरीज नहीं पाए गए है. पिछले वर्ष डेंगू पॉजीटिव मरीजों की संख्या शहर के अगल-बगल एवं मीरगंज में देखने को मिली थी.
तीन तरह के होते हैं डेंगू शहर के डॉ. राजीव दयाल ने बताया कि डेंगू तीन प्रकार के होते है. डेंगू के ज्यादातर मामलों में मच्छर के काटने से हल्का बुखार होता है लेकिन डेंगू बुखार तीन तरह का होता है. इन तीनों में से डेंगू हॅमरेजिक बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं. साधारण डेंगू बुखार अपने आप ठीक हो जाता है . इससे जान का खतरा नहीं होता. लेकिन, अगर किसी को डीएचएफ या डीएसएस है और उसका फौरन इलाज शुरू किया जाना चाहिए.
क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार - इसके मरीज में बुखार करीब 5 से 7 दिन तक रहता है . जिसके बाद मरीज ठीक हो जाता है. ज्यादातर मामलों में इसी किस्म का डेंगू बुखार पाया जाता है. इसमें ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार होता है. सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता हैआंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना भी इसके लक्षणों में शामिल है. बहुत कमजोरी महसूस होना,भूख न लगना,जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना भी इसके लक्षणों में शामिल है.
डेंगू हॅमरेजिक बुखार (डीएचएफ) अगर क्लासिकल साधारण डेंगू बुखार के लक्षणों के साथ-साथ ये लक्षण भी दिखाई दें तो डीएचएफ हो सकता है. ब्लड टेस्ट से इसका पता लग जाता है. इसमें मरीजों के नाक और मसूढ़ों से खून आता है. शौच या उल्टी में खून आने लगता है. स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के छोटे या बड़े निशान पड़ जाते हैं.
डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस) इस बुखार में डीएचएफ के लक्षणों के साथ-साथ ‘ शॉक’की अवस्था के भी कुछ लक्षण दिखाई देते हैं.
जैसे कि मरीज को बेचैनी होती है. तेज बुखार के बावजूद उसकी त्वचा ठंडा रहता है. मरीज का धीरे-धीरे बेहोश होने लगता है.