गोपालगंज: जिले में सारण नहर के जाल बिछे रहने के बाद भी किसानों की मेहनत की फसल सिंचाई के बिना सूख रही है. सिंचित घोषित जमीन में लगी धान की फसल पानी के बिना झुलस रही है.
पूर्व में जिले में नहर से करीब 65 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होती थी. लेकिन,नहर की बदतर स्थिति से किसानों को सिंचाई की सुविधा नहीं मिल पा रही है.नहर के पक्कीकरण का कार्य अब तक पूरा नहीं हो सका है. दस वर्ष पूर्व ही यह कार्य शुरू किया था. लेकिन, अब तक 65 फीसदी ही कार्य पूरा किया जा सका है. जबकि 542 करोड़ की योजना पर करीब साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए खर्च भी हो चुके हैं. किसानों का कहना है कि नहरों के पक्कीकरण में गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखा गया है. दर्जनों स्थानों पर पक्कीकरण कार्य ध्वस्त हो चुके हैं. जिससे नहरों के अंतिम छोर तक पानी का प्रवाह नहीं हो रहा है. जिले के बरौली, सदर , कुचायकोट, उचकागांव, पंचदेवरी, भोरे, बैकुंठपुर, मांझागढ़ में वितरणी व उपवितरणियों की मरम्मत व साफ-सफाई नहीं होने से अधिकतर खेतों तक नहर का पानी नहीं पहुंच पा रहा है. जगह-जगह नहर गाद से भी भरी हुई है. स्लैब टूटे बिखरे है. 2020 में आई गंडक की बाढ़ से बरौली, सिधवलिया व बैकुंठपुर में क्षतिग्रस्त नहरों की मरम्मत चार वर्षों के बाद भी नहीं हो सकी है. क्षतिग्रस्त नहरों में पानी का बहाव नहीं हो पा रहा है. मांझा प्रखंड से होकर गुजरने वाली शाखा नहरों का भी हाल बेहाल है. सूखे की स्थिति बने रहने व सरकार के निर्देश के बाद भी नहरों की साफ-सफाई का कार्य पूरा नहीं हो सका है. बरौली के किसान नहर में पानी नहीं आने को लेकर आंदोलन भी कर रहे हैं. लेकिन,परिणाम सिफर है.
अब सिंचाई कर पाना किसानों के लिए मुश्किल: जून के दूसरे सप्ताह में पंप सेट से सिंचाई कर धान की रोपनी करने वाले किसान पहले ही बारिश नहीं होने से धान की कई सिंचाई कर चुके हैं. जिसमें उन्हें काफी खर्च हो चुका है. अब धान की सिंचाई करना किसानों के लिए उनके लिए मुश्किल हो गया है. किसानों का कहना है कि पहले ही औसत से डेढ़ गुना खर्च हो चुका है.