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बड़ी खबर
मोतिहारी। धनिया एक ऐसा मसाला है जिसके बगैर भोजन की थाली अधूरी मानी जाती है।जिसका उपयोग प्राय: हर रसोई में किया जाता है। धनिया भोजन को सुगंधित बनाने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी बनाता है।मसाला से लेकर चटनी के साथ ही कई औषधियो मे भी इसका खूब प्रयोग किया जाता है।जिससे इसकी मांग बाजार में सदैव बनी रहती है।ऐसे में रबी मौसम में इसकी खेती किसान भाईयो के लिए काफी लाभदायक है।इस मौसम में गन्ना आलू व मक्का के साथ अंतरवर्ती फसल के रूप में या अकेले भी इसकी खेती कर भरपूर लाभ प्राप्त की जा सकती है।ऐसे भी कई अन्य राज्यो के साथ बिहार में खासकर उत्तर बिहार में इसकी खेती की जाती है। मिली जानकारी के अनुसार लगभग 3 लाख टन के औसत वार्षिक उत्पादन के साथ भारत विश्व में धनिया का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। इसके उत्पादन में वर्ष दर वर्ष व्यापक उतार चढ़ाव रहता है।
-मिट्टी और जलवायु
धनिया के खेती के लिए दोमट, मटियार या कछारी भूमि जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश और अच्छी जल धारण की क्षमता हो, उसे उपयुक्त मानी गयी है।इस फसल को शुष्क ठण्डे मौसम की आवश्यकता होती है।
-धनिया की उन्नत किस्में
धनिया की बुआई के लिए कई उन्नत किस्मे बाजार में उपलब्ध है।जिसमे पंत धनिया -1, मोरोक्कन, सिम्पो एस 33, गुजरात धनिया -1, गुजरात धनिया -2, ग्वालियर न.-5365, जवाहर धनिया -1, सी. एस.-6, आर.सी.आर.-4, यु.डी-20,436, पंत हरीतिमा, सिंधु जैसी किस्मे शामिल है।
-कैसे करे भूमि की तैयारी
अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए भूमि की अच्छी जुताई के पूर्व 5-10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाना चाहिए। धनिया को ऐसे तो प्राय: छीटा करते है लेकिन अगर 5-5 मीटर की क्यारियां बना कर बुआई की जाय इससे सिंचाई के साथ निराई-गुड़ाई करने में आसानी होती है।
-बुआई का समय
धनिया की बुआई के लिए अक्टुंबर से नवंबर माह सबसे उपयुक्त माना गया है।क्योकी अधिक तापमान में बुआई करने से बीजो में अंकुरण कम हो जाता है।ऐसे में बुवाई करने के पूर्व तापमान का ध्यान जरूर रखे।जलवायु परिवर्त्तन के दौर में कई क्षेत्रों में पला अधिक भी पड़ने लगा है,ऐसे में इन क्षेत्रो के किसान बुआई ऐसे समय में न करें,जिसमे फसल को अधिक नुकसान हो।
-बीज को करे उपचारित
घनिया के बेहतर उत्पादन के लिए बीज की मात्रा व उसका उपचार करना जरूरी है।15 से 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है।वही बीजोपचार के लिए दो ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।साथ ही बुआई से पहले दाने को दो भागों में तोड़ दे।लेकिन ध्यान रहे कि बीज का अंकुरण भाग नष्ट न होने पाए।साथ ही अच्छे अंकुरण के लिए बीज को 12 से 24 घंटे पानी में भिगो कर हल्का सूखा कर बीज उपचारित कर बुआई करे।
-बुआई की विधि
25 से 30 सेमी. कतार से कतार को दुरी और 5 से 10 सेमी. पौधों से पौधे की दुरी रखना चाहिए। असिंचित फसल से बीजों को 6 से 7 सेमी. गहरा बोना चाहिए और सिंचित फसल में बीजों को 1.5 से 2 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए, क्योंकि ज्यादा गहरा बोने से सिंचाई करने पर बीज पर मोटी परत जम जाती हैं, जिससे बीजों का अंकुरण ठीक से नहीं हो पाता हैं।
-निराई और खरपतवार नियंत्रण
धनिया बुआई के बाद इसके पहली बढ़वार थोड़ी धीमी होती हैं।ऐसे में बुआई के तीस दिनो बाद खेतो में सोहनी,निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देने चाहिए।आमतौर पर धनिये में दो बार निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है। पहली 30-35 दिन पर एवं दूसरी 60 दिन बाद करें। इससे पौधों में बढ़वार अच्छी होगी।खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथालीन 1लीटर प्रति हेक्टेयर 600 लीटर पानी में मिलाकर अंकुरण से पहले भी छिड़काव किया जा सकता है लेकिन इसका ध्यान रहे की छिड़काव के समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए और छिड़काव शाम के समय में ही करें।
-सिंचाई
धनिया में दो-तीन सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। वैसे सिंचाई की संख्या बुवाई के समय,भूमि का प्रकार और स्थानीय मौसम के ऊपर निर्भर होने के आधार पर सिंचाई संख्या कम और ज्यादा भी हो सकती हैं।
स्रोत-परसौनी कृषि विज्ञान केन्द्र,पूर्वी चंपारण
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