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गया : बिहार के गया जिले में इन दिनों पितृपक्ष मेला को लेकर गया जी के 54 वेदियों पर पिंडदान तर्पण और श्राद्ध का कार्य चल रहा है। सनातन धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र मुक्तिधाम गया जी में देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्री अपने पूर्वजों की मुक्ति की कामना को लेकर पिंडदान कर रहे हैं। 17 दिनों से लेकर एक दिनी , पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म किए जाने का विधान है। कुछ लोग पूरे विधि विधान के साथ 17 दिनों तक गयाजी में रहकर पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान करते हैं।
इस क्रम में अंतिम दिन गया के अक्षय वट वेदी पर पिंडदान करने का विधान है। अक्षय वट वृक्ष के नीचे पिंडदान के उपरांत तीर्थयात्री अपने श्राद्ध कर्मों के सफल हो जाने के बाद पंडा द्वारा सुफल का आशीर्वाद लेकर गयाजी से अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि गयाजी में 17वें दिन पिंड दान गयाजी के अक्षय वेदी पर करने से पूर्वजों को सांसारिक मोह माया से मुक्ति मिल जाती है और स्वर्ग की ओर कूच कर जाते हैं। यहां पिंडदान के उपरांत तीर्थ यात्रियों द्वारा बंधन की भी परंपरा है।
ऐसी मान्यता है कि सुफल प्राप्ति के बाद तीर्थयात्री मनोकामना को लेकर वापस जाते हैं और जो मन में मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं उसे पूर्ण होने पर गया जी पुनः आते हैं और उस बंधन को मुक्त कर देते हैं। गया जी के अक्षय वट वेदी पर कर्मकांड कराने वाले पंडा वृंदावन ने बताया कि पृथ्वी पर पांच जगह पर अक्षय वट है गयाजी में माधव स्वरूप वट वृक्ष है वही जगन्नाथपुरी में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में मथुरा और वृंदावन में वंशीधर के रूप में और श्रीलंका में निशुंभ के रूप में वट वृक्ष , अक्षय रूप में विराजमान है। पंडा श्री ने बताया कि जब , प्रलय आएगा तब कोई भी नहीं बचेगा। ऐसे में भगवान श्री कृष्ण बाल्यावस्था में पृथ्वी पर अवतरित होंगे और सृष्टि का विस्तार करेंगे।
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