बिहार

कैंसर की रोकथाम के लिए बिहार में 27 लाख लोगों की हुई जांच, 79 हजार में मिले इसके लक्षण

Renuka Sahu
7 March 2022 2:40 AM GMT
कैंसर की रोकथाम के लिए बिहार में 27 लाख लोगों की हुई जांच, 79 हजार में मिले इसके लक्षण
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फाइल फोटो 

बिहार में कैंसर की रोकथाम, जांच एवं इलाज को लेकर 26 लाख 96 हजार 126 लोगों के स्वास्थ्य की जांच की गई है और इनमें 79 हजार 071 व्यक्तियों में कैंसर के प्रारंभिक लक्षण पाए गए हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार में कैंसर की रोकथाम, जांच एवं इलाज को लेकर 26 लाख 96 हजार 126 लोगों के स्वास्थ्य की जांच की गई है और इनमें 79 हजार 071 व्यक्तियों में कैंसर के प्रारंभिक लक्षण पाए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग के निर्देश पर विभिन्न जिलों में कैंसर के प्रति आमलोगों को जागरूक करने और कैंसर के मरीजों की पहचान को लेकर आशा कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी गयी है।

राज्य में 16,32,254 मुंह के कैंसर, 7,44,955 स्तन कैंसर एवं 3,44,447 गर्भाशय के मुंह के कैंसर की पहचान के लिए जांच की गई। इनमें मुंह के कैंसर के 23,462, स्तन कैंसर के 15,285 और गर्भाशय के मुंह के कैंसर के 40,324 संदिग्ध मरीजों को रेफर किया गया है। विभाग के अनुसार एनपीसीडीसीएस (नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ कैंसर, डायबिटीज, कार्डियोवॉस्कुलर एंड स्ट्रोक) के तहत कैंसर की रोकथाम को लेकर आमलोगों को जागरूक किया जा रहा है। राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यक्रम पदाधिकारी के अनुसार टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल, मुजफ्फरपुर के सहयोग से राज्य के 16 जिलों में नि:शुल्क कैंसर स्क्रीनिंग अभियान संचालित किया जा रहा है।
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा, 'राज्य सरकार कैंसर की बीमारी के मरीजों को लेकर ग्रामीण इलाकों तक इलाज की सुविधा पहुंचाने के लिए प्रयत्नशील है। इसको लेकर विभिन्न जिलों में कैंसर मरीजों की पहचान का काम शुरू हो गया है। इनके इलाज के लिए भी मुजफ्फरपुर व पटना में सुविधाएं बढ़ायी जा रही है। कैंसर के मरीजों केलिए मुजफ्फरपुर में विशेष अस्पताल निर्माणाधीन है जबकि पटना के आईजीआईएमएस में 138 करोड़ की लागत से स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बना है।'
आशा कार्यकर्ता लोगों को कर रही हैं जागरूक
बिहार में ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर जाकर आशा कार्यकर्ता कैंसर के प्रति आमलोगों में जागरूकता का प्रसार कर रही है। कैंसर की रोकथाम और मरीजों की प्रारंभिक स्थिति में ही पहचान कर उनके इलाज की व्यवस्था किए जाने को लेकर जागरूकता का प्रसार किया जा रहा है। आशा कार्यकर्ता 30 साल से अधिक उम्र के पुरुषों एवं महिलाओं को कैंसर के प्रति जागरूक कर रही हैं और उन्हें कैंसर की स्क्रीनिंग कराने के लिए प्रेरित करती हैं। सूत्रों के अनुसार आबादी के आधार पर मास स्क्रीनिंग व ऑपर्चुनिटी बेस स्क्रीनिंग हो रही है। इनमें कई लोग जो स्वयं कैंसर की जांच कराने के लिए अस्पताल आते हैं, उन्हें ऑपर्चुनिटी बेस स्क्रीनिंग कहा जाता है। हालांकि, स्वास्थ्य जागरूकता की कमी के कारण कैंसर की जांच कराने के लिए अस्पताल आने वालों की संख्या कम है। इसलिए आबादी आधारित मास स्क्रीनिंग होती है।


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