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बिहार | प्रखंड के किसानों ने किसी प्रकार से धान की बुआई तो खेतों में कर दी, परंतु मानसून के दगा देने व नहरों में पानी नहीं आने से धान की फसल सूखने की कगार पर पहुंच गई है. नहरों में करीब एक दशक से पानी नहीं आया है. जिसके चलते नहर सुखी हुई है. किसानों ने जिला प्रशासन से नहरों में पानी छोड़े जाने की मांग की है.
किसानों की माने तो सेलौर, बेलौर, केलहुरुआ, कोढवलिया, ओदिखोर, बाजीदही, सुरुआर गुण्डी, कुडेसर, चकिया, भलुआ, पचनेरुआ, रेवासी, खाप जतौर, जतौर, बलुआ, ग्यासपुर, मैरीटार, बसुहारी, किशनपुरा, तिरबलुआ गांव में धान की खेती सबसे अधिक होती है. वहीं, नहर के आसपास के दर्जनों गांवों के किसान नहरों में आने वाले पानी पर सबसे अधिक निर्भर रहते हैं. किसान खेतों में लगी फसल को पंपसेट से पटवन कर बचाने में लगे हैं. प्रखंड में 4554 हेक्टेयर भूमि में धान की खेती का पंचायतवार लक्ष्य निर्धारित किया गया था. बीएओ विक्रमा मांझी ने बताया कि जुलाई के पहले सप्ताह में धान की बुआई शुरू कर दी गयी थी. पूरे प्रखंड में इस वर्ष 4554 हेक्टेयर भूमि में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया था.
क्या कहते हैं डीएओडीएओ जयराम पॉल ने बताया कि अभी बारिश होने की संभावना है. किसानों को खाली खेत में तोड़िया लगा देना चाहिए व धान के खेतों को सिंचाई करते रहना होगा ताकि वह नीचे से सूखे नहीं.
जरूरत से कम करीब 40 फीसदी हुई है बारिश
प्रखंड में इस साल धान की खेती वैसे भी कम हुई है लेकिन मानसून के हिसाब से 201.4 मिमी बारिश दर्ज की गई है. किसानों की माने तो इस मानसून में करीब 40 फीसदी कम बारिश हुई है, जो फसलों की जरूरत से भी काफी काम है. इसका असर धान की फसल के उत्पादन पर भी पड़ेगा. यह अलग बात है कि कुछ किसान डीजल पंपसेट व मोटर से फसल की सिंचाई कर रहे हैं.
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Harrison
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