नालंदा न्यूज़: मौसम की बेरुखी किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है. खरीफ की खेती संकट में है. हद तो यह कि अबतक महज 13 फीसद यानी 1826 हेक्टेयर में ही धान के बीज डाले गये हैं. जबकि, 13 हजार 908 हेक्टेयर में बिचड़ा तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है.
धान की अच्छी उपज के लिए अनुकूल रोहिणी नक्षत्र आठ जून को ही खत्म हो चुका है. मृगिशरा भी चार दिनों में समाप्त हो जाएगा. आसमान से बरस रही ‘आग’ के कारण चाहकर भी किसान खेतों में बीज डालने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.
नालंदा में इसबार एक लाख 39 हजार 113 हेक्टेयर में धान की रोपनी होनी है. जबकि, पिछले साल एक लाख 33 हजार 609 हेक्टेयर लक्ष्य रखा गया था. वहीं, मक्के की खेती के रकवा में करीब 820 हेक्टेयर की कमी की गयी है. गत साल 4264 हेक्टेयर में फसल तैयार हुई थी. इसबार 3,444 हेक्टेयर में खेती का टारगेट रखा गया है. इसके अलावा अरहर, मूंग, मेथी, उड़द, कूल्थी, ईंख, मूंग, सूर्यमुख व अन्य फसलों की खेती होनी है. लेकिन, मौसम के कारण खेती प्रभावित हो रही है. अमूमन मौसम का साथ मिलता है तो रोपनी शुरू हो जाती है. लेकिन, इसबार बेरहम मौसम के आगे किसान हार चुके हैं. देह जला देने वाली गर्मी और बारिश के आगमन का कोई ठिकाना न रहने के कारण किसान मजधार में फंसे हैं. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार लम्बी अवधि के बिचड़े तैयार करने के लिए किसानों के पास ही मौका है. जबकि, मध्यम अवधि वाले 30 जून तक तो कम अवधि वाले बिचड़े 16 जुलाई तक तैयार कर सकते हैं. ज्यादातर किसान चाहते हैं कि कम से कम एक बार झमाझम बारिश हो जाए तो सूखे खेतों में नमी लौट आएगी. सरदार बिगहा के किसान धनंजय कुमार, नूरसराय के जगदीश प्रसाद, चंडी के वीरेन्द्र कुमार, अस्थावां के प्रेमरंजन कुमार कहते हैं कि बीज बोना आसान है. लेकिन, अप्रत्याशित गर्मी में बिचड़े को बचाना किसी मुसीबत से कम नहीं है. सुबह व शाम सिंचाई करने के बाद भी पौधे में रंगत नहीं दिखती है.
बारिश का हाल ठीक नहीं मानसून की दगाबाजी के कारण नालंदा में बारिश का हाल भी ठीक नहीं है. जून में अबतक महज 6.72 एमएम बारिश हुई है. जबकि, 68.11 एमएम सामान्य बारिश की जरूरत थी. हालांकि, मई में 22.6 एमएम की जगह 30.03 तो अप्रैल में 8.7 एमएम की जगह 14.65 एमएम बारिश रिकार्ड की गयी थी. किसानों का कहना है कि अप्रैल व मई में हुई बारिश से खरीफ की खेती को खास लेना-देना नहीं है. जून में अच्छी बारिश होती तो बड़ी राहत मिलती.
धान की फसल के तैयार होने का समय:
● 25 दिन में रोपनी के लायक होता है बिचड़ा
● 60 दिन में पौधे में होने लगता है गव्वा
● 75 दिन में पौधों में लगने लगती हैं बालियां
● 24 घंटे में गब्बे में बनता है दूध
● 24 घंटे में बनने लगते हैं दाने
नुकसान से बचना है तो अपनाएं ये तरीका: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के जिला तकनीकी पदाधिकारी धनंजय कुमार कहते हैं कि मौसम की मार खरीफ की खेती पर खूब पड़ रही है. समस्या उन किसानों के साथ सबसे ज्यादा है जो रोहिणी नक्षत्र में बिचड़ा तैयार किये गये हैं. 25 मई से नक्षत्र की शुरुआत हुई थी. यानि करीब 25 दिन हो चुके हैं. अमूमन रोपनी के लिए 25 से 30 दिनों के बिचड़े की जरूरत पड़ती है. बारिश का कोई ठिकाना नहीं है. ऐसे में रोपनी में विलंब होना तय है. किसानों को ध्यान यह रखना है कि देर से जब रोपनी करें तो बिचड़े के गुच्छों की संख्या बढ़ा दें. इससे उपज प्रभावित नहीं होगी.
सुस्ती अबतक महज 148 क्विंटल ही बंटा बीज: खरीफ की खेती के लिए किसानों को अनुदान पर बीज दिया जा रहा है. लेकिन, वितरण की रफ्तार सुस्त है. कृषि समन्वयक और किसान सलाहकारों की चल रही हड़ताल के कारण किसान बीज लेने से वंचित हो रहे हैं. अबतक 569 किसानों के बीच महज 148 क्विंटल बीज का ही वितरण हो पाया है. जबकि, करीब 3108 क्विंटल बीज बांटने का लक्ष्य है. 3352 किसानों ने बीज के लिए ऑनलाइन आवेदन किया है. 804 क्विंटल बीज की मांग की है. इसबार अच्छी वेरायटी का बीज अनुदान पर न मिलने के कारण किसानों का रुझान भी काफी कम है.