बक्सर न्यूज़: इसमें कोई दो राय नहीं कि बदलती दुनिया में मेले कमजोर हुए हैं. बड़े-बड़े मेलों पर इसका असर पड़ा है, तो गांव-कस्बों में लगने वाले मेले अछूते कैसे रहते. सबसे बड़ी बात कि मेलों के कमजोर होने से ग्रामीण अंचल का सांस्कृतिक और आर्थिक पक्ष बुरी तरह प्रभावित हुआ है. मेलों की स्थिति पर जब सदर विधायक मुन्ना तिवारी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मेले हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं. इन्हें बचाने का भरपूर और सामूहिक प्रयास होना चाहिए. सिर्फ सरकार पर छोड़ देना उचित नहीं. बीते दो दशकों के अंदर जो बदलाव आया है, उसके चलते मेले बुरी तरह प्रभावित हुए.
हालांकि कुछ बदलाव स्वाभाविक हैं, जिनके साथ एडजस्ट करना पड़ता है. पहले मेले गंवई कारीगरों और कलाकारों के लिए कमाई का जरिया हुआ करते थे. मेलों में लोग अपनी छोटी-छोटी दुकानें लगाते थे. सर्कस, नौटंकी, झूला, चरखी, रामलीला वगैरह मेले की शान हुआ करते थे. लेकिन, ये सब गायब से हो गए. इससे बड़ा तबका प्रभावित हुआ. इसमें कोई दो राय नहीं कि उनका रोजगार छिन गया. तिवारी ने कहा कि मेलों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास की आवश्यकता है. जिम्मेदार लोगों को भी इस दिशा में ध्यान देना चाहिए. मेलों को अपने हाल पर छोड़ देना कहीं से वाजिब नहीं. थोड़ी बहुत साफ-सफाई और सुरक्षा उपलब्ध करा देना काफी नहीं है.
प्रशासनिक स्तर पर ठोस कदम उठाया जाना चाहिए. लोगों को भी इसके लिए पहल करनी चाहिए. तिवारी ने कहा कि बक्सर में पंचकोस का मेला काफी पुराना और प्रसिद्ध है. दूर-दूर से इस मेले में शामिल होने के लिए लोग बक्सर आते हैं. लिट्टी-चोखा का यह मेला अब भी गंवई माहौल से भरा होता है. मैं इस मेले को सरकारी मेले का दर्जा दिलाने का प्रयास करूंगा.