मुजफ्फरपुर: राज्य के शिक्षण संस्थान नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिएशन काउंसिल (नैक) से मान्यता लेने में पीछे चल रहे हैं. पिछले कुछ माह से इसे अभियान के तौर पर लिया गया है पर अब भी मात्र 45 संस्थानों के पास इसकी मान्यता है. इनमें तीन विवि और 42 कॉलेज शामिल हैं. नैक की मान्यता नहीं रहने से संस्थानों को केंद्रीय फंड का नुकसान होता है. वहीं नैक की मान्यता से एक साख भी जुड़ी रहती है.
संस्थानों में शैक्षणिक गतिविधि, शोधकार्य, लैब, पुस्तकालय, आधारभूत संरचना आदि की गुणवत्ता के आधार पर नैक के द्वारा ग्रेड दिये जाते हैं. राज्य के मात्र एक डिग्री कॉलेज (एएन कॉलेज, पटना) को ‘ए प्लस’ ग्रेड मिला है. वहीं, साउथ बिहार सेंट्रल विवि, गया को ए ग्रेड प्राप्त है. पीयू को ‘बी प्लस’ और चाणक्या नेशनल विधि विश्वविद्याय को ‘बी’ ग्रेड प्राप्त है. पटना वीमेंस कॉलेज और संतजेवियर कॉलेज ऑफ एजुकेशन, पटना को ‘ए’ ग्रेड मिला हुआ है.‘बी’ ग्रेड प्राप्त कुल छह कॉलेजों में पटना सायंस कॉलेज, जेडी वीमेंस कॉलेज पटना, पटना लॉ कॉलेज, गया कॉलेज, रोहतास महिला कॉलेज और मिर्जा गालिब कॉलेज गया शामिल है. नैक मान्यता प्राप्त संस्थान को केंद्र से राशि दी जाती है, जो दस करोड़ तक होती है.
पीछे रहने के ये हैं कारण
नैक की ग्रेडिंग में पीछे रहने का मुख्य कारण कॉलेजों में नियमित प्राचार्य का अभाव है. नैक से मान्यता प्राप्त करने में प्राचार्य की ही मुख्य भूमिका होती है. राज्य में 270 अंगीभूत कॉलेज हैं. वहीं, करीब इतनी ही संख्या में सबद्ध और निजी कॉलेज हैं. संबद्ध कॉलेजों की स्थिति इस मामले में और भी खराब है. वहीं, कोरोना काल के बाद नैक मान्यता की स्थिति और खराब हुई. पूर्व में राज्य के 150 से अधिक संस्थानों के पास नैक से ग्रेड मिला हुआ था पर, बाद में इसमें कमी आई. यही कारण है कि अब इसको लेकर अभियान चलाया जा रहा है.