बिहार

'प्लास्टिक बेबी' की जान नहीं बचा सके डॉक्टर्स, अंत समय में दिखी ये हरकत

Gulabi
16 Jan 2022 11:13 AM GMT
प्लास्टिक बेबी की जान नहीं बचा सके डॉक्टर्स, अंत समय में दिखी ये हरकत
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चिकित्सकों के मुताबिक कॉलोडियन विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में से एक है
औरंगाबाद. दिसंबर 2021 के दूसरे पखवाड़े में बिहार के औरंगाबाद के सोहदा की रहने वाली एक महिला ने एक ऐसे बच्चे को जन्म दिया था, जिसका पूरा शरीर प्लास्टिक जैसी किसी परत से ढंका हुआ था. कोई भी एक बार इसे देखता तो यही कहता कि यह एक 'प्लास्टिक बेबी' है. इसकी चर्चा हर जुबान पर थी तो वहीं, डॉक्टर परेशान थे. दरअसल यह बच्चा एक अजीबोगरीब बीमारी से ग्रसित था और उसे बचाने की जद्दोजहद में लगे डॉक्टर चाहते थे कि इसे बचा लिया जाए.
बिहार के औरंगाबाद सदर अस्पताल परिसर स्थित नवजात शिशु देखभाल इकाई में इलाजरत इस 'प्लास्टिक बेबी' के जीवन के लिए सभी प्रार्थना कर रहे थे. डॉक्टरों ने भरपूर प्रयास किए, लेकिन इस बच्चे को बचाया नहीं जा सका. कॉलोडियन (collodion) नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित इस बच्चे के हाथ और पैरों की अंगुलियां आपस में जुड़ी होने के साथ ही पूरे शरीर पर प्लास्टिक जैसी परत चढ़ी हुई थी. यही वजह थी कि इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को 'प्लास्टिक बेबी' कह कर भी पुकारा जाता है.
यहां मीडिया रिपोर्ट के हवाले से यह भी बता दें कि बीते वर्ष पंजाब के अमृतसर में भी कई कॉलोडियन बेबी ने जन्म लिया था. इससे पहले राजस्थान के अलवर जिले से भी ऎसे ही एक बच्चे के पैदा होने की खबर आई थी. मिली जानकारी के अनुसार पिछले सात साल के अंदर ऐसे 3 बच्चों का जन्म हो चुका है और तीनों में किसी की जान नहीं बचाई जा सकी. औरंगाबाद में भी जन्मे बच्चे की जान बचाने की तमाम कोशिशें डॉक्टरों ने की, पर ऐसा हो न सका.
चिकित्सकों के मुताबिक कॉलोडियन (collodion) विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में से एक है. यह बीमारी मां-बाप के शुक्राणुओं में गड़बड़ी की वजह से होती है. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा कॉलोडियन हो सकता है. इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक की परत चढ़ जाती है. धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और असहनीय दर्द होता है. यदि संक्रमण बढ़ा तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल होता है.
बच्चों में यह बीमारी जेनेटिक डिसऑर्डर की वजह से होती है. चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक यह एक कॉलोडियन बेबी (collodion baby) है जो दुनिया में पैदा लेने वाले 11 लाख बच्चों में से एक होता है. एसएनसीयू में इलाजरत बच्चा बिलकुल स्वस्थ लग रहा था और सामान्य बच्चे की तरह हर एक एक्टिविटी कर भी रहा था. ऐसा लग रहा था कि बच जाएगा, मगर चिकित्सकों के अथक प्रयास के बावजूद इसे बचाया नहीं जा सका.
एसएनसीयू के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ दिनेश दुबे ने बताया कि इसका इलाज औरंगाबाद जैसे छोटे सेंटर में नहीं हो सकता था, बल्कि मेडिकल कॉलेजों या फिर किसी रिसर्च सेंटर में ही संभव था. वहां भी जान बच ही जाती इसकी कोई गारंटी नहीं थी. उन्होंने बताया कि इस बीमारी के बारे में बहुत जानकारी यहां के डॉक्टरों को नहीं थी. बच्चा स्वस्थ दिख रहा था, लेकिन अचानक कई एक्टिविटी में बदलाव देखने को मिले. शरीर के अधिकतर अंग धीरे-धीरे नाकाम होते चले गए और बच्चे की स्थिति बिगड़ती चली गई, जिसे हम काबू नहीं कर पाए.
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