नालंदा न्यूज़: हरनौत प्रखंड के सिर्फ पांच गांवों के 623 एकड़ में जलवायु अनुकूल खेती हो रही है. सरथा, चैनपुर, रुपसपुर, पोरई व मुढ़ारी गांव के चयनित किसानों को इसका लाभ मिल रहा है. नालंदा के इन गांवों में नवंबर 2019 में इस कार्यक्रम को पॉयलोट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया था. इन किसानों को आधुनिक खेती के लिए जागरूक किया जा रहा है. हालांकि, रबी की खेती 623 एकड़ में तो खरीफ फसल की खेती इन्हीं चयनित गांवों में सिर्फ 595 एकड़ में होती है. इन चयनित खेतों के अलावा आसपास के खेतों में आज भी धड़ल्ले से पराली (फसल अवशेषों) को किसान जला रहे हैं. जबकि, कृषि विभाग के अधिकारी व कर्मी के साथ ही कृषि वैज्ञानिक भी लगातार किसानों को पराली जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति आगाह कर रहे हैं. इससे लगातार ऊपजाउ मिट्टी की उर्वरकता कम होती जा रही है.
जिला में पराली अवेशेषों के प्रबंधन के लिए हो रहे प्रयास भी नाकाफी हैं. हाल के दिनों से कृषि विभाग के अधिकारी स्ट्रा बेलर (पराली का गांठ बनाने की मशीन) के उपयोग पर जोर दे रहे हैं. इस मशीन से खेत में जाकर सीधे गांठ बनाया जाता है. एक एकड़ खेत के पराली को गांठ बनाने पर 16 सौ रुपए देने पड़ते हैं. यही हाल बायोचार का है. एक एकड़ के फसल अवशेष का प्रबंधन करने में किसानों को साढ़े तीन हजार खर्च करने पड़ते हैं. यानि अवशेषों का प्रबंधन करने में काफी लागत आ रही है. इसलिए धरातल पर प्रबंधन का यह दोनों तरीका नहीं बढ़ पा रहा है.
हरनौत प्रखंड के चखामिन्द गांव के किसान लल्लु पंडित, नागेंद्र, नीरज ने बताया कि खेतों की कटाई आगे पीछे होती है. अब तक स्ट्रा बेलर मशीन का उपयोग ही समझ में नहीं आया है.
बिहारशरीफ में हैं सिर्फ पांच स्ट्रा बेलर
जिला में हरनौत केवीके पास एक स्ट्रा बेलर है. जबकि, नगरनौसा भोभी, सिलाव व सरमेरा में जीविका समूह के पास एक-एक स्ट्रा बेलर हैं. इसके अलावा महिंद्रा कंपनी के पास एक स्ट्रा बेलर हैं. यानि जिला में सिर्फ पांच स्ट्रा बेलर ही हैं. अधिक खर्च होने के कारण फिलहाल किसान इसका भी भरपूर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं.