दरभंगा न्यूज़: मिथिला क्षेत्र से पलायन कोई नई बात नहीं. यह इस क्षेत्र की पुरानी समस्या है जिसका अब तक समाधान नहीं हो पाया है. साल दर साल पलायन की दर बढ़ती ही जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन से पलायन की दर और तेज हो सकती है. मिथिला का क्षेत्र कृषि प्रधान रहा है. आज भी इस क्षेत्र की बड़ी आबादी कृषि व उससे जुड़े गतिविधियों पशुपालन, मत्स्य पालन, मखाना उत्पादन आदि पर निर्भर है. इस क्षेत्र में बड़े उद्योगों का अभाव है जिसके कारण बेरोजगारी की दर अधिक है. स्कील्ड मजदूरों के लिए यहां रोजगार की संभावनाएं काफी कम हैं. शिक्षित बेराजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में यहां के लोग रोजी-रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों का रुख करते रहे हैं. दरभंगा से लंबी दूरी की खुलने वाली ट्रेनों में यह भीड़ आसानी से देखी जा सकती है. एक समय में यह क्षेत्र जल की प्रचूरता के लिए जाना जाता है. लगभग हर साल बाढ़ का दंश झेलना इस क्षेत्र की नियति बन चुकी थी. हालांकि, बाढ़ के जाने के बाद खेती व मत्स्य पालन की अनुकूल स्थितियां बन जाती थी, जिससे इससे जुड़े लोगों को थोड़ी राहत मिलती थी. धीरे-धीरे यह क्षेत्र जल की कमी वाला क्षेत्र बनता जा रहा है. पिछले पांच सालों में तीन बार सूखे की स्थिति इस क्षेत्र में बन चुकी है. साथ ही, अब भूमिगत जल की समस्या बनने लगी है. क्रमश वर्षापात की कमी के कारण इस क्षेत्र में अब कृषि के साथ ही मत्स्य पालन पर भी प्रतिकूल असर पड़ने लगा है.
पर्यावरणविद प्रो. विद्यानाथ झा ने बताया कि जलवायु परिवर्तन का एक सकारात्मक असर यह हुआ है कि मखाना की खेती अब खेतों में होने लगी है. पहले यह तालाबों में ही होती थी, लेकिन जल की कमी के कारण अब दरभंगा-मधुबनी के कई भागों में खेतों में मखाना की फसल हो रही है. इसमें महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी है. वहीं, जल संकट के कारण पलायन और तेज होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता.
प्रो. झा ने बताया कि यहां के कृषि मजदूर हर साल बड़ी संख्या में पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों का रूख करते हैं. इन राज्यों में पराली प्रबंधन समस्या के कारण यहां के मजदूर बारगेनिंग पोजिशन में आ रहे हैं. इस कारण भी पलायन को बल मिला है. कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से निबटने के लिए सरकार व आमलोगों के स्तर पर सामूहिक प्रयास करने होंगे.