बक्सर: जिले के किसान सूखा से परेशान रहते हैं. पानी नहीं होने के कारण कई बार धान की फसलों को काटकर फेंकने को भी मजबूर हो जाते हैं लेकिन अब किसानों के अच्छे दिन आ गए हैं. चौसा में चेक डैम (Check Dam In Buxar ) बनने से किसानों को बड़ी राहत मिली है. कुल 12 चेक डैम में से 8 बन चुकें हैं. जो किसान ट्यूबेल चला करके धान की खेती करते थे, अब वो चेकडैम में स्टोर पानी से खेती कर रहें हैं. चेक डैम के बन जाने से यहां भूजल का स्तर भी ऊपर आया है. मनरेगा (MNREGA Scheme) के तहत और सीएम नीतीश के जल जीवन हरियाली योजना (Jal Jeevan Hariyali Yojana) से यहां पर चेक डैम का निर्माण कार्य किया गया है.
बक्सर में लौटी हरियाली: बेकार और बंजर भूमि को खेती योग्य बनाना हो, जल संरक्षण करने के लिए जलाशय, नहर ,आहर, पाइन आदि बनाना हो , ग्रामीण क्षेत्रों में रास्ते का निर्माण हो या सड़कों के किनारे पेड़ लगाकर पर्यावरण को शुद्ध और स्वच्छ रखना हो, सभी को इस योजन के अंतर्गत रखा गया है. मनरेगा का अद्भुत क्रियान्वयन बक्सर के चौसा में देखा जा सकता है. जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर, गंगा , धर्मावती और कर्मनाशा नदियों के किनारे वर्षों से बेकार और बंजर पड़ी भूमि में चेक डैम बनाकर हरियाली लाई जा रही है.मनरेगा के तहत चेक डैम का निर्माण: वर्षा का जल, आहर और पाइन के माध्यम से नदियों में बहकर बेकार चला जाता था वह जल अब चेक डैम में रोककर सुखाड़ से प्रभावित खेतों के लिए पटवन के काम आ रहा है. बताया जा रहा है कि भूजल का दोहन कम हुआ तो जलस्तर भी बढ़ने लगा है. यहां मनरेगा की सफलता देखी जा सकती है.किसानों को मिल रहा फायदा: इसको लेकर बक्सर के डीएम अमन समीर ने कहा कि मुख्यमंत्री चलाए जा रहे जल जीवन और हरियाली अभियान के तहत चेक डैम बनाए जा रहे हैं. हमलोग सभी पीओ को अपने अपने प्रखंड में चिन्हित करते हुए जो भी उनका क्षेत्र है, निर्देशित किए थे. चेकडैम बनाने से किसानों को लाभ होगा. जलस्रोत में बढ़ोतरी होगी."पीओ चौसा द्वारा बहुत ही बढ़िया कार्य किया गया है. निर्देशानुसार सभी किसानों को एक प्लेटफार्म पर लाया गया है. समस्यायों को समझा गया और उसके आधार पर हमलोग ने एक निर्णय लिया है कि कितने चेक डैम का कंस्ट्रक्शन किया जायेगा. नॉर्मली यहां पानी नहीं रहता था क्योंकि यह कर्मनाशा नदी में चला जाता था. अभी जो चेक डैम का कंस्ट्रक्शन का काम हो रहा है एवरेज एक सौ एकड़ का है. आगे भी उद्देश्य है कि जो जल स्रोत हैं उसका हम लोग संरक्षण किया जाए."- अमन समीर, डीएम, बक्सरमनरेगा से बदली जिंदगी: 7 सितंबर 2005 को पारित नरेगा योजना की शुरुआत सबसे पहले 2 फरवरी 2006 को आंध्र प्रदेश के बांदावाली जिले के अनंतपुर नामक गांव से हुई थी.प्रारंभ में इस योजना को लगभग 200 जिलों में लागू किया गया था लेकिन बाद में इसे 1 अप्रेल 2008 को पूरे देश में लागू कर दिया गया. 31 दिसंबर 2009 को नरेगा के नाम में परिवर्तन करके इसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना अर्थात मनरेगा कर दिया गया.मनरेगा का उद्देश्य: मनरेगा का उद्देश्य देश गांव में रहने वाले लोगों को गांव में ही रोजगार प्रदान करना और उनकी कार्यशक्ति को बढ़ाना रहा है. जिससे कि गांव में रहने वाले लोग शहर में न जाकर गांव में ही रोजगार प्राप्त कर सके. मनरेगा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस योजना में हर गांव के इच्छुक सभी स्त्री-पुरुषों को साल भर में 100 दिन का रोजगार निश्चित रूप से मिलता है. मनरेगा के लक्ष्यों का क्रियान्वयन ग्राम पंचायतों के स्तर पर होने के लिए खर्च केन्द्र सरकार देती है. कार्यक्रम का क्रियान्वयन और खर्चों का लेखा जोखा राज्य सरकारें करतीं हैं.