बिहार

विपक्ष को एकजुट करने का अभियान आकार लेने की ओर अग्रसर

Admin Delhi 1
26 May 2023 7:18 AM GMT
विपक्ष को एकजुट करने का अभियान आकार लेने की ओर अग्रसर
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मुजफ्फरपुर न्यूज़: विपक्षी दलों को एकजुट करने का अभियान अब आकार लेने की ओर अग्रसर है. एनडीए से बाहर होने के बाद नौ महीने पहले यानी सितंबर 2022 में नीतीश कुमार ने इसकी शुरुआत कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात कर की थी. उन्होंने पहले ही साफ कर दिया था कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एका मुहिम की कोई सार्थकता नहीं होगी. इस बार अभियान पर निकलने से पहले उन्होंने यह दावा भी किया था कि थर्ड नहीं, मेन फ्रंट बनेगा. नीतीश कुमार इस अभियान के तहत चौथी बार दिल्ली यात्रा कर पटना लौटे. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की. इसके बाद जदयू और कांग्रेस की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलान किया गया कि विपक्षी दलों की बैठक जल्द होगी और इसकी घोषणा दो-तीन दिनों में कर दी जाएगी. खड़गे ने ट्वीट किया कि इस बार पूरा देश एकजुट होगा. नीतीश कुमार ने तीसरी बार अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात की थी.

भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की गोलबंदी के अभियान का पहला चरण पूरा हो गया है. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के मौन को छोड़ दें, तो इसे हर तरफ से मुखर समर्थन मिला. गैर एनडीए दलों के नेताओं ने नीतीश कुमार के अभियान को खुलकर समर्थन दिया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उनसे समान विचारधारा वाले दलों को एक मंच पर लाने में अग्रणी भूमिका निभाने का अनुरोध किया था. इसके बाद नीतीश कुमार ने आप, सपा, टीएमसी, झामुमो, बीजद, एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (माले) और शिवसेना के शीर्ष नेताओं से बारी- बारी से मुलाकात की. सबने इसे समय की मांग करार दिया और साझा बैठक करने पर सहमति भी जताई. हालांकि इस बीच क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने सीटों के बंटवारे के फार्मूले पर अपनी राय भी जाहिर की. ममता बनर्जी ने इसी महीने की 15 तारीख को कहा कि कांग्रेस जहां कमजोर है, वहां क्षेत्रीय दलों को समर्थन दे. अखिलेश यादव और हेमंत सोरेन ने इसका समर्थन भी किया. जदयू और राजद भी इस फार्मूले से लगभग सहमत रहे हैं.

अब समय नजदीक आ गया है, जब यह अभियान आकार लेने वाला है. लेकिन सबसे अहम सवाल आज भी मौजूं है कि यह किस प्रकार से आकार लेगा? झारखंड और बिहार में बड़ी समस्या नहीं है, और न बिहार के सत्ताधारी महागठबंधन में शामिल सात दलों के बीच साझेदारी के फार्मूले में कोई बड़ा पेच फंसने की आशंका है. या फिर महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल जैसे राज्यों में भी बड़ी समस्या आड़े नहीं आएगी. लेकिन सपा, टीएमसी और आप को लेकर अब भी सवाल उठ रहे हैं कि इनका कांग्रेस के साथ तालमेल का फार्मूला क्या होगा? या फिर इन दलों की शर्तें क्या होंगी और उन पर सहमति कैसे बनेगी? दरअसल आप कई राज्यों में कांग्रेस के विरोध में ताल ठोकती रही है. पंजाब में तो कांग्रेस से उसने आमने- सामने की लड़ाई लड़ी है. इसके अलावा दिल्ली, गुजरात, गोवा में भी एक-दूसरे के खिलाफ लड़े. अभी संपन्न हुए कर्नाटक चुनाव में आप कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोक रही थी. जानकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी कोई बड़ी बाधा नहीं आएगी. सबसे ज्यादा पेच दिल्ली और पंजाब में आप को लेकर फंस सकता है. हालांकि अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने नीतीश कुमार के साथ अलग- अलग साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में विपक्षी एकता की जमकर हिमायत की. वैसे दिल्ली पर केन्द्र सरकार का ताजा अध्यादेश भी विपक्षी दलों को आपस में जोड़ने की एक मजबूत कड़ी बन सकता है. आज कोलकाता पहुंचे अरविंद केजरीवाल को ममता बनर्जी ने अध्यादेश के खिलाफ उनका साथ देने का आश्वासन दिया.

बहरहाल, इन तमाम किंतु-परंतु के बावजूद विपक्षी एका की मुहिम अब आकार लेने के मुहाने पर है. नीतीश कुमार की कोशिश है कि पूरे देश में हर सीट पर एनडीए के खिलाफ विपक्ष का साझा उम्मीदवार उतारने पर सहमति बने. पूरे देश में जितने दलों से नीतीश कुमार और मल्लिकार्जुन खड़गे ने संपर्क साधा है, उनमें एक-दो दल हो सकता है अपनी-अपनी जिद पर ज्यादा अड़ें, लेकिन ज्यादातर दलों का रवैया लचीला ही रहने के आसार हैं.

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