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भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट करने का अभियान चला रखा है लेकिन भाजपा की मोदी सरकार के चाणक्य अमित शाह की चाल को समझ पाना नीतीश के लिए आसान नहीं है। भाजपा ने नीतीश कुमार को अब एक बड़ा झटका दिया है। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की दमन और दीव ईकाई का सोमवार को पूरी तरह से विलय हो गया। यूं तो भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के साथ बिहार में सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के नेताओं में भी एकजुटता नहीं दिख रही है और इसका परिणाम सामने आ रहा है।
कुछ दिन पहले अरूणाचल प्रदेश में जदयू के एकमात्र विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। इसके बाद हाल ही में मणिपुर के जदयू के 7 में से 5 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिय । जदूय के पांच विधायकों का पिछले सप्ताह भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में सत्तारूढ़ दल भाजपा में विलय किया गया था। हैरानी की बात है कि दमन और दीव के जदयू के 17 जिला पंचायत सदस्यों में से 15 राज्य जदयू की पूरी ईकाई भाजपा में शामिल हो गई। भाजपा ने एक ट्वीट में कहा कि नीतीश कुमार द्वारा बिहार में विकास को गति देने वाली भाजपा को छोड़कर बाहुबली, भ्रष्ट एवं परिवारवादी पार्टी का साथ देने के विरोध में दमन और दीव के जेडीयू के 17 में से 15 जिला पंचायत सदस्य एवं जेडीयू की पूरी ईकाई भाजपा में शामिल हुई। बिहार में भी कभी भी बड़ा उलटफेर हो सकता है। नीतीश विपक्ष का एक चेहरा बनने की कोशिश में है लेकिन यह राह भी उनके लिए उतना आसान नहीं है जितना वह समझ रहे हैं। वहीं, विपक्ष के बड़े नेताओं में भी प्रधानमंत्री का चेहरा बनने की होड़ लगी है और यही कारण है कि उन्हें नीतीश स्वीकार नहीं हो रहा है।
नीतीश से मिलने जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव गत दिनों जब नीतीश कुमार से मिलने पटना पहुंचे थे, उस दौरान पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या विपक्ष की तरफ प्रधानमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार को बनाने की घोषण आप करेंगे तो उन्होंने कहा कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी। उसके बाद नीतीश दिल्ली के तीन दिवसीय दौरे पर आए। 5, 6 और 7 सितंबर तक दिल्ली में डेरा जमाने के बाद भी उन्हें वो भाव नहीं मिला जिसकी उन्हें उम्मीद थी। नीतीश ने राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी और डी राजा से दिल्ली में मुलाकात की लेकिन वो सामान्य शिष्टाचार तक ही सीमित रहा। चाय-ब्रेक फास्ट और लंच की राजनीति अब उतनी वजनदार नहीं मानी जाती जितनी एक दशक पहले मानी जाती थी। राजनीति में भी व्यापक बदलाव हुए हैं। हैरत की बात है कि दिल्ली प्रवास के दौरान नीतीश ने पाशा फेंका कि वह न तो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं और न ही इसके इच्छुक हैं। उन्होंने कहा था कि उनका ध्यान सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने पर है।
नीतीश अपने दिल्ली प्रवास के दौरान ओम प्रकाश चौटाला, एचडी देवगौड़ा जैसे विपक्षी नेताओं से मुलाकात के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी देश लौट आएंगी तो मैं उनसे मिलने फिर दिल्ली आऊंगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी नीतीश की गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए है। आम जनता में नीतीश कुमार के प्रति बहुत अच्छी धारणा नहीं रह गई है। इसलिए भाजपा बहुत ज्यादा नीतीश को लेकर चिंतित नहीं है। वर्ष 2014 में नीतीश की पार्टी जदयू ने जब भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा था तब उसे मात्र दो सीटें लोकसभा की आयी थी। दरअसल, जदयू की विश्वासघात की राजनीित और बाहुबलियों से एक बार फिर हाथ मिलाने का फैसला लोगों को रास नहीं आ रहा है। यह अलग बात है कि नीतीश कुमार को अपने कार्यकर्ताओं के मन की बात भी समझ में नहीं आ रही है और यही कारण है कि जदयू के नेता पार्टी से एक-एक कर किनारा कर रहे हैं।
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