बिहार
बिहार के सबसे 'जिद्दी' CM दारोगा प्रसाद राय, कंडक्टर की वजह से गंवानी पड़ी थी गद्दी
Tara Tandi
2 Sep 2023 12:02 PM GMT
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बिहार के राजनीतिक सूरमाओं में एक नाम और भी था. यह नाम था दारोगा प्रसाद राय का. दारोगा प्रसाद राय न सिर्फ बिहार के मुख्यमंत्री थे बल्कि वित्तमंत्री और कृषि मंत्री की भी जिम्मेदारी संभाली थी. ऐसा कहा जाता है कि दारोगा प्रसाद बेहद ही जिद्दी किस्म के इंसान थे और उनकी एक छोटी सी जिद उनपर भारी पड़ गई थी और उसकी कीमत उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गवांकर चुकानी पड़ी थी. आज यानि 02 सितंबर को उनकी जयंती है. 2 सितंबर 1922 को बिहार के सारण में जन्मे दारोगा प्रसाद राय 16 फरवरी 1970 से 22 दिसंबर 1970 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. दिसंबर 1970 में कांग्रेस के अल्पमत में आने के बाद दारोगा प्रसाद को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और राज्य में पहली बार गैंर कांग्रेसी सरकार बनी और राज्य को कर्पूरी ठाकुर के रूप में पहला सोशलिस्ट मुख्यमंत्री मिला. कर्पूरी ठाकुर ने जन संघ के सपोर्ट से सरकार बनाई थी. वहीं दारोगा प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री रहने के अलावा 1973 से 1975 तक राज्य के उप मुख्यमंत्री भी रहे.
छोटी सी जिद की वजह से गवां दी मुख्यमंत्री की कुर्सी
एक कंडक्टर ले डूबा मुख्यमंत्री जी को!
आदिवासी कंडक्टर के निलंबन की घटना बने गले की फांस
1970 में दस माह के लिए मुख्यमंत्री रहे दारोगा प्रसाद राय के लिए एक सरकारी बस कंडक्टर का निलंबन वापस न लेना ही बदकिस्मती का पर्याय बना.और उन्हें अप्रत्याशित तौर पर अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी.1970 में जब वह इंदिरा गांधी और हेमवती नंदन बहुगुणा के वीटो से मुख्यमंत्री बने तब बिहार राजपथ परिवहन के एक आदिवासी कंडक्टर के निलंबन की घटना हुई. इस कंडक्टर ने सरकार में शामिल झारखंड पार्टी के आदिवासी नेता बागुन सुम्ब्रई से कार्रवाई वापस लेने की गुहार की. बागुन सीएम दारोगा से मिले और कंडक्टर का निलंबन वापस लेने का निवेदन किया. इसके बाद भी मामला जस का तस रहने पर एक सप्ताह बाद बागुन दोबारा सीएम से मिले और उन्होंने कहा कि देखते हैं. इसके बाद नाराज बागुन ने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी. झारखंड के 11 विधायक थे.
दारोगा प्रसाद ने इसे हल्के में लिया क्योंकि उन्हें लगा कि उनके पास पर्याप्त संख्या में विधायक हैं. लेकिन दिसंबर के आखिरी सप्ताह में हुए फ्लोर टेस्ट में दारोगा फेल साबित हुए. लेफ्ट पार्टी ने भी झारखंड पार्टी की तरह समर्थन नहीं दिया. सरकार के समर्थन में 144 मत थे जबकि विपक्ष में 164 मत पड़े. गैर कांग्रेस सरकारों में जहां दरोगा प्रसाद नेता प्रतिपक्ष हुआ करते थे वहीं कांग्रेस की सत्ता में दोबारा वापसी के बाद केदार पांडेय के मुख्यमंत्री रहते वह कृषि मंत्री बने. जबकि इसके बाद अब्दुल गफूर की सरकार में वित्त मंत्री रहे. लेकिन बाद में उनका नाम ट्यूबवेल घोटाले में नाम जुड़ गया जिसने उनकी बेदाग छवि पर दाग लगाया. इस घोटाले में हुआ कुछ नहीं लेकिन उनकी लोकप्रियता को काफी नुकसान पहुंचा था. राजनीतिक करियर में तमाम उतार चढ़ाव के बाद 15 अप्रैल 1981 को उनका निधन हो गया. आज उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे चंद्रिका राय संभाल रहे हैं. जो लालू प्रसाद यादव के समधी भी हैं. ये थी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की कहानी.
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