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बिहार : हाजीपुर सीट का बदल सकता है राजनीतिक समीकरण, चाचा-भतीजे में है जंग!

Tara Tandi
23 Sep 2023 1:02 PM GMT
बिहार : हाजीपुर सीट का बदल सकता है राजनीतिक समीकरण, चाचा-भतीजे में है जंग!
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आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर NDA और INDIA आमने-सामने है. लोकसभा चुनाव में बिहार-यूपी जैसे राज्यों की अहम भूमिका है. बिहार में कुल 40 लोकसभा सीट है. वहीं, बिहार की बात करें तो हाजीपुर लोकसभा सीट पर सबकी नजरें टिकी हुई है. हाजीपुर सीट पर चाचा-भतीजे की टकरार देखने को मिल सकती है. बता दें कि जहां एक ओर मौजूदा हाजीपुर सांसद पशुपति पारस अपनी लोकसभा सीट छोड़ने को तैयार नहीं है और आगामी चुनाव में भी यहां से चुनाव लड़ने को तैयार दिख रहे हैं तो वहीं उनके भतीजे चिराग पासवान जो मौजूदा समय में जमुई से सांसद है. वह भी हाजीपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान करते नजर आ रहे हैं. ऐसे में चाचा-भतीजे के बीच कैसे सियासी समीकरण बैठाया जाएगा, यह एनडीए के लिए एक चुनौती के समान है.
1977 से SC के लिए हाजीपुर सीट आरक्षित
बता दें कि एक समय ऐसा भी था जब हाजीपुर सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. पूरे देश में कांग्रेस का परचम था, कांग्रेस ने करीब 2 दशक तक इस सीट पर राज किया. वहीं, 1977 में इस सीट को एससी के लिए आरक्षित कर दिया गया. जिसके बाद यहां से युवा नेता के तौर पर रामविलास पासवान ने रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की. कांग्रेस को रामविलास ने ना सिर्फ हराया बल्कि पूरे देश में सर्वाधिक 469007 वोटों से हराकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम भी दर्ज कराया.
रामविलास पासवान ने दर्ज किया रिकॉर्ड तोड़ जीत
रामविलास पासवान का जीत का सिलसिला हाजीपुर से यही नहीं थमा, बल्कि उन्होंने 8 बार यहां से सांसद बनने का रिकॉर्ड बनाया. 1977 के बाद 1980 में भी उनके सिर पर जीत का ताज सजा. वहीं, 1984 में कांग्रेस नेता राम रतन राम ने उनकी जीत का रथ रोक दिया. कहते हैं ना हार के जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं, कुछ ऐसा ही रामविलास ने कर दिखाया और 1989 में उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस नेता को 5 लाख 4 हजार 488 वोटों से हराकर खुद अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया. इसके बाद 1996, 1998, 1999 और 2004 में जीत दर्ज की. रामविलास को सिर्फ 2009 में हार का सामना करना पड़ा और 2014 में एक बार फिर से उन्होंने जीत दर्ज की. इस जीत के साथ ही वह हाजीपुर सीट से 8वीं बार सांसद बने और यह उनका आखिरी चुनाव था.
हाजीपुर लोकसभा के अंदर 6 विधानसभा
हाजीपुर लोकसभा सीट के अंदर हाजीपुर, महनार, लालगंज, महुआ, राघोपुर और राजापाकर विधानसभा सीट है. पहले पातेपुर विधानसभा भी हाजीपुर के अंदर था, लेकिन 2014 में यह हाजीपुर से कटकर उजियारपुर लोकसभा सीट का हिस्सा बन गया. इन 6 विधानसभा सीटों में राघोपुर सीट लालू परिवार की मानी जाती है और मौजूदा समय में तेजस्वी यादव राघोपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं.
जातीय समीकरण
हाजीपुर लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां यादव, भूमिहार, राजपूत, कुशवाहा, पासवान और रविदास की संख्या सबसे अधिक है. वहीं अति पिछ़ड़ी जातियों की संख्या भी अच्छी है, इनका भी चुनाव के नतीजे में अहम रोल होता है.
बड़े भाई के बाद छोटे भाई की हुई हाजीपुर सीट पर एंट्री
रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति पारस की बात करें तो 1977 में खगड़िया के अलौली विधानसभा से जीत हासिल कर पहली बार विधायक बने. इसके बाद 1985 में भी उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी को हराकर जीत हासिल की. इस तरह से पशुपति पारस ने कई बार जीत का ताज अपने सिर पर सजाया. वहीं, साल 2019 में उनके राजनीतिक करियर में बड़ा ब्रेक आया, जब लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान की तबीयत खराब होने की वजह से उनकी जगह उन्होंने चुनाव लड़ा.
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रामविलास ने अपनी जगह भाई पशुपति को हाजीपुर सीट दे दी और पशुपति ने यहां से राजद के शिव चंद्र राम को हराकर खुद को साबित कर दिया. मौजूदा समय में वह केंद्रीय मंत्री हैं.
हाजीपुर सीट पर राजनीतिक विशेषज्ञ का सियासी गणित
बता दें कि चाचा-भतीजे की लड़ाई हाजीपुर सीट पर नई सियासी गणित तैयार कर सकती है. राजनीतिक विशेषज्ञ की मानें तो चिराग को एनडीए बिहार में युवा नेता की तौर पर देखते हैं और वह ऐसे में उन्हें बैकफुट पर नहीं लाने वाले हैं. इसलिए एनडीए 3 बड़ी सीटों पर राजनीतिक पारी खेल सकते हैं और चिराग को हाजीपुर लोकसभा सीट दी जा सकती है. वहीं जमुई से उनकी जगह किसी बड़े नेता को प्रत्याशी बनाया जा सकता है. वहीं, पशुपति पारस को खगड़िया लोकसभा चुनाव से उम्मीदवार बनाया जा सकता है. खैर, वो तो आने वाला वक्त बताएगा कि इस सीट से किसे मौका दिया जाता है और इस सेफ सीट से एनडीए दाव खेलने में कामयाब हो पाती है या नहीं.
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