बिहार

मछली उत्पादन में बिहार नहीं बना अब तक आत्मनिर्भर

Admin Delhi 1
12 July 2023 12:17 PM GMT
मछली उत्पादन में बिहार नहीं बना अब तक आत्मनिर्भर
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मुजफ्फरपुर न्यूज़: बिहार में मछली का कारोबार बढ़ता जा रहा है. मछुआरों के साथ-साथ अब आमलोगों का भी व्यावसायिक साधन बनता जा रहा है. इन सबके बावजूद हैरानी की बात यह है कि मछली उत्पादन में बिहार आत्मनिर्भर नहीं हो सका है. अभी भी दो लाख टन मछली दूसरे प्रदेश आंध्रा और बंगाल से आती है. इस तरह चार हजार करोड़ रुपए बिहारवासी दूसरे प्रदेशों को हर साल दे रहे हैं. बिहार में दो करोड़ निबंधित मछुआरा हैं. इनमें 40 लाख सक्रिय हैं. यहां पांच लाख हेक्टेयर में जल श्रोत का प्रमुख साधन है. सवा लाख तालाब हैं. इसके बावजूद बिहार के लोग मछली के लिए आंध्र प्रदेश समेत दूसरे राज्यों पर निर्भर हैं. मछली उत्पादक उपेन्द्र साहनी का कहना है कि बिहार में 4-6 महीने प्रचुर पानी, नदी और लो लैंड की बहुतायत होने के बावजूद मछली उत्पादन में पिछड़ने के लिए एक तो भू-माफियाओं का आतंक है. दूसरा मछुआरों को सब्सिडी और अनुदान का लाभ नहीं मिल पाता है. नतीजतन आंध्र प्रदेश और बंगाल पर निर्भर है.

कई तरह की चल रहीं योजनाएं फिश कॉफ्फेड के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप ने बताया कि प्रदेश में मछली पालकों की आय में बढ़ोतरी करने और इस व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वार कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. केंद्र प्रायोजित मत्स्य संपदा योजना के अलावा समेकित चौर विकास योजना और आद्र भूमि विकास समेत कई योजनाओं के जरिए मछली उत्पादकों को भारी सब्सिडी देने का प्रावधान है. ऋषिकेश कश्यप का आरोप है कि सब्सिडी और अनुदान मछली किसानों और मछुआरों तक नहीं पहुंच पा रहा है. राष्ट्रीय मात्स्यिकी बोर्ड के द्वारा 2013 में मत्स्य पालकों की आय बढ़ाने और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से तालाब के ऊपर सोलर प्लेट से बिजली उत्पादन और नीचे मत्स्य पालन की परियोजना बनाई गई थी. 9 साल के बाद इस योजना में अबतक दो प्लांट लगे हैं. एक दरभंगा और दूसरा खगड़िया में.

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