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बिहार : मलमास का पहला शाही स्नान, श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी
Tara Tandi
29 July 2023 1:10 PM GMT

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पंच पहाड़ियों से घिरा (रत्नागिरी, विपलाचल, वैभवगिरी, सोनगिरि, उदयगिरि) राजगीर अपने आप में सौंदर्यता ऐतिहासिक और कई धर्मों के आस्था का केंद्र रहा है. जिसने कई सत्ता को यहां पर आते और जाते देखा है. जहां कृष्ण, बिभिसर, भीम, जरासंध, जैसे कई बीरो की गाथा अपने आप में समेटे हुए हैं. वहीं, यहां हिंदुओं के लिए ब्रह्मकुंड सप्तधारा से लेकर सूर्यकुंड कई तरह के धार्मिक स्थल है, तो मुस्लिमों के लिए मखदूम कुंड साथ ही सीख के लिए शीतल कुंड जहां गुरु नानक देव ने अपने हाथ से छूने के बाद जल को शीतल कर दिया था. बुद्ध और महावीर की भी धरती रही है.
मलमास का पहला शाही स्नान
अगर राजगीर के मलमास मेला की बात की जाए तो, मलमास सतयुग से चलता आ रहा है. जहां 33 कोटी के देवी देवता को निमंत्रण दी गई थी और 1 महीने तक यहां आकर सभी देवी-देवता वास करते हैं. ऐसा लोगों का मानना है कि धरती, आकाश और पाताल सभी ब्रह्मांड के देवी-देवताओं को आवाहन की गई थी. भगवान ब्रह्मा के द्वारा यहां पर कुंड मे अग्नि जलाकर आवाहन की गई थी और वह जल का रूप ले लिया था, जिसे आज हम लोग ब्रह्मकुंड कहते हैं.
राजगीर ब्रह्मकुंड में श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी
वहीं, अगर यह मलमास महीने की बात आती है तो यह अभी तक आप जानते होंगे कि 12 मार्च का ही साल होता है, लेकिन 3 साल के बाद यह तेरा महीने का भी 1 साल लगता है. जिसे मलमास कहा जाता है. महीने को बनाने के पीछे एक इतिहास है. जिसके अनुसार हिरण्यकश्यप को मिले वरदान के अनुसार दूसरे किसी मास ना पुरुष, ना पक्षी, ना शाम, ना सुबह, ना ही घर के अंदर, ना ही घर के बाहर, इस तरह के वरदान मिले हुए थे. अत्याचारी होने की वजह से उसकी मृत्यु निश्चित करनी थी, जिसे लेकर मास यानी महिला भी अलग से बनाया गया. जो कि 13 माह मास कहलाता है और वहीं मलमास, जो आज हम लोग जानते हैं. यह सतयुग से ही चलता आ रहा है और राजगीर में भी यह मेले की परंपरा कब से ही शुरू है.

Tara Tandi
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