फाइल फोटो
जनता से रिस्ता वेबडेसक | पिछले दिनों बालू माफिया से साठ-गांठ का पर्दाफाश होने के बाद दागी खाकी पर शुरू हुआ कार्रवाई का दौर जारी है। लोकसेवकों के भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए निगरानी ने कमर कस रखी है। हाल ही में राजधानी के जक्कनपुर थाने में तैनात इंस्पेक्टर कमलेश शर्मा के घर-ठिकानों पर छापेमारी में लाखों की नकदी बरामद होने के साथ जमीन और फ्लैट आदि के रूप में बनाई गई अकूत संपत्ति सामने आई है। थानेदार पर निलंबन की गाज गिरी है, परंतु बड़ा सवाल यह है कि लगातार खाकी के कलंकित होने के किस्से उजागर होने के बावजूद बड़े पुलिस अधिकारी महकमे को दागदार होने से बचाने के लिए कोई फुलप्रूफ व्यवस्था क्यों नहीं बना पा रहे? वर्दी की आड़ में दबंगई और घूसखोरी बढ़ती जा रही है।
तकरीबन पांच साल से बिहार में शराब का निर्माण, बिक्री और इसका सेवन प्रतिबंधित है, मगर पुलिस अधिकारी रोज शराब की बोतलों और इन्हें लेकर दूसरे राज्यों से आने वाले वाहनों के साथ पकड़े गए लोगों के साथ थाने में बैठकर फोटो खिंचवाकर अपनी पीठ ठोकते हैं। मीडिया में शराब बरामदगी को बड़ी उपलब्धि के रूप में गिनाया जाता है। प्रश्न उठता है कि जब राज्य की सीमा में दाखिल होते ही छोटी-बड़ी गाड़ियां चेकपोस्ट पर जांच के बाद अंदर आती हैं तो राजधानी पटना तक शराब भरे कंटेनर कैसे पहुंच जाते हैं? जाहिर है यह काम पुलिस की मिलीभगत से ही होता है। ऐसे में शासन स्तर से इसे पुलिस की वाहवाही नहीं मानी जानी चाहिए, बल्कि जवाब-तलब करने के साथ विभागीय कार्यवाही होनी चाहिए। जक्कनपुर के निलंबित इंस्पेक्टर 1994 में दारोगा नियुक्त हुए और इसके बाद तरक्की की पायदान चढ़ते चले गए।
क्या पहले उनकी पचीस सालों की सर्विस में कहीं से कोई भ्रष्टाचार की शिकायत नहीं आई होगी? यह बात गले नहीं उतरती। राज्य सरकार ने सभी विभागों के अफसरों को संपत्ति का हर साल विवरण देने की व्यवस्था भी बनाई है। इसे हर हाल में देना है। अगर लोकसेवक विवरण नहीं दे रहे तो उनपर कार्रवाई के लिए भी सरकार को व्यवस्था बनानी चाहिए। संपत्ति का विवरण देने वालों की पिछले साल की संपत्ति से तुलना कर ब्योरा सार्वजनिक किया जाए तभी भ्रष्टाचारमुक्त शासन की कल्पना साकार हो सकेगी।