नौ या छह- बिहार में यह कहावत खूब चलती है। मंगलवार को पटना हाईकोर्ट अपने अंतरिम फैसले से आगे अंतिम फैसले में यही करेगा। हाईकोर्ट ने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट की दी तारीख के अंदर बिहार में जातीय जनगणना को लेकर उठ रहे सवालों पर सुनवाई कर ली। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन व जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक (3 जुलाई से लेकर 7 जुलाई तक) याचिकाकर्ता और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं। कोर्ट ने जाति आधारित जनगणना बताने वालों की भी पूरी दलील सुन ली और फिर सरकार के उस दावे का पक्ष भी सुना, जिसके अनुसार यह जाति आधारित सर्वे है। अब सिर्फ हाईकोर्ट को अंतिम फैसला सुनाना है कि यह जनगणना है या सर्वे? अगर यह सर्वे बता दिया गया तो कुछ संशोधनों के साथ बिहार सरकार अप्रैल 2023 में जुटाए आंकड़ों पर आगे काम करने के लिए बढ़ जाएगी। और अगर अंतरिम फैसले के समय जैसे कोर्ट को प्रथम दृष्टया यह संविधान-विरूद्ध जातीय जनगणना लगा था, अंतिम फैसला वही रहा तो मामला लटका रह जाएगा। दोनों पक्षों के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प रहेगा, लेकिन दोनों ही पक्ष पहले भी सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी लगाकर वापस आ चुका है। बता दें कि
अंतिम फैसला आए बिना सुप्रीम कोर्ट में नहीं होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई को तीसरी बार बिहार की जाति आधारित जन-गणना के केस को पटना हाईकोर्ट के पास भेजा था। दो बार जनहित के नाम पर याचिका पहुंचने पर सुप्रीम न्यायालय ने इसे हाईकोर्ट का केस बताते हुए वापस किया था। इसके बाद पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई और यहां 04 मई को अंतरिम फैसला राज्य सरकार के खिलाफ आया। कोर्ट ने जाति आधारित जनगणना प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाते हुए 04 मई तक जुटाए सभी डाटा को सुरक्षित रखने का आदेश दिया था। पटना हाईकोर्ट से अपने खिलाफ अंतरिम आदेश को देखकर बिहार की नीतीश सरकार अगली तारीख का इंंतजार किए बगैर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा- “पटना हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले में काफी हद तक स्पष्टता है, लेकिन अंतिम फैसला आए बगैर सुप्रीम कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं होगी।
जानिए, आदेश का असर और ऑनलाइन डाटा की स्थिति
पटना हाईकोर्ट ने 04 मई को अंतरिम आदेश दिया और कुछ ही घंटे में सामान्य प्रशासन विभाग के निर्देश पर तमाम जिलाधिकारियों के जरिए गणना में लगे सारे कर्मियों तक एक लाइन का मैसेज पहुंच गया कि डाटा को यथास्थिति सुरक्षित किया जाए। इसके बाद क्या हुआ? दरअसल, भले ही सरकार ने 80 प्रतिशत काम पूरा होने की बात की है लेकिन सच्चाई यही है कि यह आंकड़ा कागज पर जानकारी जुटाने वालों का है। मतलब, 80 फीसदी के करीब लोगों की जानकारी पेपर पर ली गई है। जमा की गई जानकारी (डाटा) का औसतन 25 फीसदी भी अभी ऑनलाइन अपलोड नहीं हुआ है। जिस सरकारी सर्वर की बात सरकार ने की है, उसकी जगह ज्यादातर डाटा अभी पेपर पर ही है।