बेगूसराय: बिहार की अक्षय ऊर्जा नीति (रिन्यूएबल एनर्जी पॉलिसी) बनकर तैयार हो गई है. राज्य में गैर परम्परागत ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए तैयार इस नीति में निवेशकों को कई तरह की रियायतें दी गई हैं. जल्द ही इसकी मंजूरी राज्य कैबिनेट से ली जाएगी. इसके बाद इसकी अधिसूचना जारी होगी. नई नीति पांच साल के लिए प्रभावी होगी.
बिहार रिन्यूबल इनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (ब्रेडा) ने पहली बार वर्ष 2017 में अक्षय ऊर्जा नीति तैयार की थी. चूंकि 2022 में ही उस नीति की अवधि समाप्त हो चुकी है. इस कारण अभी वैकल्पिक व्यवस्था में पुरानी नीति को ही विस्तार दे दिया गया है. उस समय तैयार नीति में ही अक्षय ऊर्जा को उद्योग का दर्जा दे दिया गया था. उस नीति में पांच साल में 2969 मेगावाट सौर ऊर्जा, 244 मेगावाट जैव ईंधन और 220 मेगावाट पनबिजली उत्पादन का लक्ष्य था. साथ ही सौर ऊर्जा में विदेशी कंपनियों को भी आकर्षित भी करना था, लेकिन पहली नीति में तय लक्ष्य पूरा नहीं हो सका.
सरकार ने तय किया है कि गैर परम्परागत ऊर्जा में अब भी बिहार को काफी काम करने हैं. कुल बिजली उत्पादन का 17 फीसदी अक्षय ऊर्जा का उपयोग होना जरूरी है. ऐसा नहीं करने पर राज्य सरकार को रिन्यूअबल परचेज ऑब्लीगेशन की बाध्यता है. ऐसा नहीं करने पर सरकार को करोड़ों हर्जाना के तौर पर बिहार विद्युत विनियामक आयोग को भुगतान करना पड़ता है. इसलिए ऐसी नीति तैयार की गई है जिससे राज्य में अधिक से अधिक निवेशक आ सकें.
गैर परम्परागत ऊर्जा में विशेषकर सोलर ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश करें.
25 हजार करोड़ हो सकता है सोलर में निवेश बिहार में अक्षय ऊर्जा में सोलर के क्षेत्र में निवेश की सबसे अधिक असीम संभावनाएं हैं. इस क्षेत्र में 25 हजार करोड़ का निवेश होने की संभावना है. इसके तहत सोलर मॉड्यूल में 10 हजार 558 करोड़ का निवेश हो सकता है, जबकि इनवर्टर के क्षेत्र में 4040 करोड़, इलेक्ट्रिक केबल में 2313 करोड़, एलआई-बैट्री में 12 सौ करोड़ और अन्य जरूरी उपकरणों में छह हजार करोड़ का निवेश हो सकता है.