बिहार
कभी स्वर्णभूमि और अंगुत्तराप रहे बेगूसराय जिला ने पूरे किए स्थापना के 50 साल
Shantanu Roy
1 Oct 2022 6:06 PM GMT

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बेगूसराय। गंगा, बूढ़ी गंडक, बैंती, बलान, वाया और चंद्रभागा नदियों को अपने हृदय में समेटे बिहार की औद्योगिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक राजधानी बेगूसराय दो अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर जिला स्थापना का गौरवशाली 50 वर्ष पूरा कर रहा है। कभी स्वर्णभूमि और अंगुत्तराप के नाम से जाना जाने वाला बेगूसराय भले ही जिला की स्थापना का 50 वर्ष पूरा कर रहा है, लेकिन इसका स्वर्णिम इतिहास सैकड़ों वर्षों से स्वर्णाक्षर से दर्ज है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को पैदा करने वाली यह धरती विश्वस्तर के इतिहासकार रामशरण शर्मा और व्याकरण भास्कर के रचयिता वचनदेव कुमार को जन्म दे चुकी है। पुराकाल में भाड़ जाति का निवास रहने वाले बेगूसराय का क्षेत्र अपने मौर्यकालीन दुर्ग, गुप्त एवं पालकालीन प्रशासनिक केंंद्र के रूप में चर्चित रहा है। बुद्धकाल में यह क्षेत्र अंगुत्तराप का हिस्सा था, जयमंगलागढ़, नौलागढ़, गढ़खौली आदि स्थानों में भगवान बुद्ध के आगमन के प्रमाण भी उपलब्ध हैं। गुलाम वंशों के शासनकाल और मुगलकाल में भी जिले की अपनी अलग पहचान बनी थी। जिले के तेघड़ा एवं बलिया इस काल में बड़े व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरे। इसी काल में मुस्लिम शासकों ने यहां सराय का निर्माण कराया और बेगू नामक एक शासक ने यहां बड़ी सराय बनवाया, उसी के नाम पर इस स्थान का नाम बेगूसराय पड़ा। बाद में यहां की उर्वरा भूमि पर अंग्रेजों की नजर गई और उन्होंने यहां प्रशासनिक केंद्र और नील की कोठियां खोली।
हर्रख, मंझौल, आगापुर, दौलतपुर, भगवानपुर एवं सदानंदपुर में 1869 के आसपास मार्टिन ईस्ट कंपनी ने नीलकोठी खोलकर यहां से व्यापार शुरू किया। यहां सिखों के गुरूतेगबहादुर, गुरू गोविंद सिंह के आगमन भी हुए। आधुनिक भारत के जागरण के अग्रदूत स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी सत्यदेव परिव्राजक भी जिले में आए। अंग्रेजों ने इसके भौगोलिक महत्व को देखते हुए इसे पहले विभिन्न परगना में बांटा और बाद में 1870 में इसे मुंगेर जिला का अनुमंडल बनाया। मंझौल के रामकिशोर सिंह ने 1905 के बंग भंग आंदोलन के सिलसिले में मुंगेर में आंदोलन में भाग लिया और स्कूल से निकाल दिए गए। बाद के दिनों मेें वे बेगूसराय आ गए और अपने गांव से क्षेत्र में आंदोलन की बागडोर थामे रहे। बीहट, मटिहानी और अन्य गांव भी स्वतंत्रता आंदोलन के केंद्र बने। 1930 में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने जिले के गढ़पुरा में नमक कानून भंग कर गिरफ्तारी दी थी। स्वतंत्रता के बाद भी बेगूसराय का बिहार की राजनीति से लेकर देश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। दो अक्टूबर 1972 को जिला बने 75 किलोमीटर लंबे और 45 किलोमीटर चौड़े बेगूसराय का क्षेत्रफल 1918 वर्ग किलोमीटर है। गंगा पर सिमरिया घाट के निकट बना राजेन्द्र पुल (सिमरिया पुल) इसे दक्षिण बिहार से जोड़ता है तो अब इस पुल के एक ओर सिक्स लेन सड़क पुल और डबल लाइन रेलवे पुल बन रहा है। गेहूं, मक्का, धान और ईख की खेती अधिक होती है, शिक्षा और साहित्य के मामले में नाम हमेशा अव्वल रहा है। बिहार का एकलौता रामसर साइट काबर झील है तो इस झील के बीच में ही स्थित माता जयमंगलागढ़ में आदि कवि विद्यापति भी पूजा-अर्चना कर चुके हैं।
बेगूसराय को कर्मभूमि मानने वाले बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने इसे बिहार की औद्योगिक राजधानी बना डाला। आजादी के बाद गंगा नदी पर देश का सबसे पहला रेल-सह-सड़क पुल बेगूसराय में ही बना तो आजादी के बाद देश में सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे पहली रिफाइनरी इंडियन ऑयल ने बेगूसराय में बनाया, जो कि आज भी बिहार का इकलौता रिफाइनरी है। स्थापना दिवस पर स्थानीय सांसद गिरिराज सिंह ने कहा है कि इस पूरे सफर में बेगूसराय ने वैश्विक स्तर तक अपनी एक अलग पहचान बनाई है। मुझे बेगूसराय ने पाला और आज बतौर सांसद बेगूसराय की सेवा में समर्पित हूं। बेगूसराय ने समस्याओं को सदैव ही अवसर माना है और जहां से विकास की अपार संभावनाओं को गति दी जाती है। चुनौतियों से निपटकर सर्वांगीण विकास को अपनी गोद में बिठाए रखने के साथ-साथ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अभ्युदय में अग्रणी भूमिका निभाने वाले जिले का सांसद होना गर्व की बात है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व वाली सरकार बेगूसराय के दशा और दिशा सुधारने की ओर सब कुछ एकाकार कर चुके हैं। बड़ी-बड़ी परियोजनाएं आ रही है जो परिलक्षित कर रहा है कि स्वर्णिम इतिहास वाले बेगूसराय का भविष्य कितना गौरवमयी होगा। बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने जिस बेगूसराय की परिकल्पना की थी उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मूर्त रूप दे रहे हैं।
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