बिहार

तीन साल में 300 प्रतिशत बढ़ी बच्चों में ऑटिज्म की समस्या

Admin Delhi 1
21 July 2023 11:55 AM GMT
तीन साल में 300 प्रतिशत बढ़ी बच्चों में ऑटिज्म की समस्या
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पटना न्यूज़: बच्चों में स्वलीनता (ऑटिज़्म) की समस्या लगातार बढ़ रही है. इस समस्या से पीड़ित होकर बड़ी संख्या में बच्चे इलाज कराने पटना के अलग-अलग अस्पतालों में पहुंच रहे हैं. एक आंकड़े के मुताबिक आईजीआईएमएस के मनोरोग विभाग में आनेवाले 50 मरीजों में से पांच से छह बच्चे ऑटिज्म पीड़ित पाए जा रहे हैं.

पटना आयुर्वेदिक कॉलेज में प्रत्येक सप्ताह 10 से 12 मरीज पहुंचने लगे हैं. यहां कोरोना के पहले सप्ताह में एक-दो मरीज इस बीमारी से पीड़ित होकर पहुंचते थे. कॉलेज के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अरविंद चौरसिया ने बताया कि तीन साल पहले की तुलना में लगभग 300 प्रतिशत ज्यादा मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं. मानसिक विकास में कुछ कमी के कारण ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अपने आप में सिमटे, अकेले रहने, किसी बात को बार-बार बोलने, अत्यधिक जिद्दी, काल्पनिक दुनिया में खोए रहने व शारीरिक विकास में कमी से ग्रसित होते हैं. दिमाग का अपेक्षित विकास नहीं होने से ऐसे बच्चे देर से चलना, देर से बोलना और देर से कुछ सीखते-समझते हैं. डॉ. कृष्ण कुमार सिंह और डॉ. अरविंद चौरसिया ने बताया कि इस बीमारी की जितनी जल्दी पहचान हो जाए, उतना ही बेहतर इलाज संभव है. ज्यादा उम्र होने पर यह बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाती है.

अत माता-पिता को बच्चे के बाद से ही सावधानीपूर्वक उनके विकास पर नजर रखनी चाहिए. अगर बच्चों के बोलने, चलने, अथवा प्रतिक्रिया देने में देरी हो तो तुरंत शिशु रोग विशेषज्ञ अथवा बाल मनोरोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए.

मोबाइल और टीवी का ज्यादा इस्तेमाल घातक: आयुर्वेदिक कॉलेज के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अरविंद चौरसिया ने बताया कि इस समस्या से पीड़ित 150 बच्चों पर उनके विभाग की टीम द्वारा अध्ययन किया गया. इन बच्चों के व्यवहार पर मोबाइल-टीबी का भी कुप्रभाव देखा गया है. छोटे बच्चों को मोबाइल में व्यस्त रखना, घंटों टीवी पर कार्टून देखना, खेलकूद से दूरी,एकाकी परिवार के कारण अपने में सिमटा रहना और माता-पिता की अनदेखी से भी बच्चों में कई तरह की समस्याएं बढ़ी हैं.

डॉ. राजेश कुमार सिंह ने बताया कि अपने देश में दो साल के बाद से बच्चों में ऑटिज्म की पहचान होनी शुरू होने लगती है. माता-पिता की सक्रियता से इससे पहले भी पता लग सकता है. पीड़ित बच्चे अपने-आप में मगन रहते हैं, सामाजिक मेल-जोल से कतराते हैं, आंख में आंख मिलाकर बात नहीं करते और किसी भी घटना के प्रति उदासीन रहते हैं.

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