वर्तमान में सूबे के शहरों की 90 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही
पटना: भारतीय संविधान में नागरिकों को साफ हवा-पानी मिले इसे मौलिक अधिकार माना गया है, जबकि वर्तमान में सूबे के शहरों की 90 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही है. नदी, तालाब, पोखर और नहर का पानी प्रदूषित हो चुका है.
ऐसे में प्रदेशवासियों से साफ हवा पानी मिलने का मौलिक अधिकार छीन रहा है. इसके बाद भी पर्यावरण संरक्षण चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता है. राजनीतिक दल घोषण पत्र में पर्यावरण संरक्षण को प्रमुखता से शामिल नहीं करते हैं. पर्यावरणविदों की मानें तो आजकल कई बीमारियां प्रदूषण की वजह से हो रही हैं. जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान में बढ़ोतरी से जीवन प्रभावित हो रहा है. पर्यावरणविदों की मानें तो विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण जरूरी है. राजनीतिक दलों को अपने घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण को मुद्दा के रूप में शामिल करना चाहिए.
सूबे की हवा छह महीने तक रहती है खराब सूबे की हवा छह महीने तक खराब रहती है, वहीं गंगा नदी समेत 22 नदियों का पानी नहाने के लायक नहीं रह गया है. यह रिपोर्ट किसी और की नहीं बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की है.
पटना की हवा की बात करें तो इसका वायु गुणवत्ता सूचकांक साल में छह महीने तक औसतन खराब श्रेणी में रहता है. सुबह और शाम में घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. सुबह 9 बजे तक पटना का वायु गुणवत्ता सूचकांक 0 पाया गया था. खुले में साफ हवा में लोग सांस नहीं ले पा रहे हैं यह मुद्दा नहीं बनता है, जबकि पटना में दो लोकसभा सीटें हैं. लोगों ने कहा कि पर्यावरण की संरक्षा हर राजनीतिक दल का चुनावी मुद्दा होना चाहिए.
दूषित हवा और पानी से बीमारियों का बढ़ता है प्रकोप
पारस हॉस्पिटल के श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रकाश सिन्हा ने कहा कि दूषित हवा-पानी से शरीर में कई बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है. फेफड़े में संक्रमण, सांस नली का सिकुड़ना, अस्थमा, एलर्जी की समस्या भी बढ़ती है. दूषित जल से टायफाइड, पेट में संक्रमण, डायरिया जैसी बीमारियां फैलती हैं. इन सबके अलावा कैंसर का एक बड़ा कारण भी प्रदूषण माना जाता है. अकेले पटना के अस्पतालों में सांस संबंधी मरीजों की संख्या में प्रति वर्ष 20 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो रही है. इन बीमारियों के इलाज पर आमलोगों की बड़ी राशि खर्च होती है. ऐसे में प्रदूषण यानी दूषित हवा और पानी को एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बनाना ही चाहिए, जो भी जन प्रतिनिधि हैं अगर इन मुद्दों पर ध्यान देंगे तो प्रदूषण को कम किया जा सकता है.