बिहार

कतरनी के अलावा धान की अन्य वैरायटी भी होंगी बौनी

Admin Delhi 1
7 July 2023 5:33 AM GMT
कतरनी के अलावा धान की अन्य वैरायटी भी होंगी बौनी
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भागलपुर न्यूज़: कतरनी के बाद धान की अन्य वैरायटी की लंबाई को भी बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) कम करेगा. इसके लिये शोध किया जा रहा है. इस शोध में पूरी सफलता के बाद न सिर्फ धान का उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि किसानों को ज्यादा लाभ भी होगा.

खरीफ के मौसम में आंधी-बारिश से धान की फसल को नुकसान आदि को देखते हुये बीएयू ने इसके बचाव के लिये काम करना शुरू किया है. वैज्ञानिकों ने कतरनी धान के लंबे पौधों को छोटा करने का काम शुरू किया है. इसमें कुछ हद तक सफलता मिलने के बाद अन्य वैरायटी पर भी काम करना शुरू किया है. इससे किसानों को होने वाली परेशानी और नुकसान को दूर किया जा सकेगा. कतरनी के बाद जिन चार वैरायटी को बौना बनाने पर काम शुरू किया है, उसमें सोनाचूर, मालभोग, श्यामजीरा और कारीबांक वैरायटी के पौधे शामिल हैं. इसलिये इन पर भी पिछले तीन-चार वर्षों से काम किया जा रहा है. इसके परंपरागत वैरायटी में इन पौधों की लंबाई 155 से 160 सेंटीमीटर होती थी. लेकिन अब शोध के बाद इसकी लंबाई 20 से 25 सेंटीमीटर कम कर 125 से 130 सेंटीमीटर की जा रही है.

● कतरनी के अलावा अन्य वैरायटी पर बीएयू कर रहा है काम

● मालभोग, सोनाचूर, सहित अन्य वैरायटी पर हो रहा है काम

लंबाई कम तो बढ़ा उत्पादन

इन वैरायटी के लंबे पौधों में उत्पादन 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता था. बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक द्वारा बौना बनाये जाने के बाद इन चारों वैरायटी से उत्पादन बढ़कर 35 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा.

विभिन्न जगहों पर किया जाएगा ट्रायल

डॉ. मंकेश ने बताया कि इन चारों वैरायटी वाले पौधों से बीएयू के खेतों में बीज तैयार किया गया है. अभी तो कतरनी की नाटी वाली नई वैरायटी के बीज को बिहार के तीन एग्रोक्लाईमैटिक जोन में लगाये जा रहे हैं. इन अन्य चार वैरायटी में भी सफलता मिलने पर उसे भी इन तीन एग्रोक्लाइमैटिक जोन में लगाये जायेंगे और इसकी जांच की जायेगी.

फसल तैयार होने में लगेगा कम समय

बीएयू में इस शोध पर काम कर रहे और पीआई डॉ. मंकेश कुमार ने बताया कि बौना होने के पहले कतरनी को तैयार होने में 150 से 155 दिन लगते थे. अब बौना होने के बाद 125 से 130 दिन लगते हैं. इन चार वैरायटी को भी अभी तक तैयार होने में 140 से 150 दिन लगते थे. लेकिन शोध के बाद 125 से 130 दिनों में तैयार हो रहे हैं.

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