बिहार

आजादी का अमृत महोत्सव : प्रदर्शनी में लोगों ने जाना उद्देश्य और गुमनाम सेनानियों को

Shantanu Roy
22 Oct 2022 6:07 PM GMT
आजादी का अमृत महोत्सव : प्रदर्शनी में लोगों ने जाना उद्देश्य और गुमनाम सेनानियों को
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बेगूसराय। लाखों लोगों की कुर्बानियां देने के बाद 75 वर्ष पहले भारत को विदेशी शासन से मुक्ति मिली थी। उसके बाद लिखे जाने वाले किताबों में स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथा बताई जा रही है। लेकिन वह वीर गाथा सिर्फ गिने-चुने सेनानियों की है। इतिहासकारों ने अपने हिसाब से किताब के पन्नों पर कुछ गिने-चुने स्वतंत्रता सेनानियों को जगह दी है। संग्राम के दौरान हजारों ऐसे लोग थे, जिन्होंने मां भारती को विदेशी कब्जे से मुक्त कराने के लिए ना सिर्फ अपनी जान दे दी, बल्कि सर्वस्व समर्पित कर दिया। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश आजादी का अमृत महोत्सव बना रहा है तो ऐसे गुमनाम सपूतों को भी सामने लाया जा रहा है, उनके बारे में देशवासियों को बताया जा रहा है। इसी कड़ी में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के केंद्रीय संचार ब्यूरो पटना ने सिमरिया कल्पवास मेला में छह दिवसीय फोटो प्रदर्शनी लगाकर सिर्फ कल्पवासी ही नहीं, युवाओं को भी एक-एक पहलुओं से अवगत कराया है। 15 अगस्त 2023 तक चलने वाले आजादी का अमृत महोत्सव के तहत बताया जा रहा है कि पांच स्तम्भ स्वतंत्रता संग्राम, 75 विचार 75, 75 उपलब्धियां, 75 क्रियाएं और 75 संकल्प आजादी की लड़ाई के साथ-साथ आजाद भारत के सपनों और कर्तव्यों को देश के सामने रखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे। प्रदर्शनी के माध्यम से दिखाया जा रहा है कि आजादी का अमृत महोत्सव यानी आजादी की ऊर्जा का अमृत। आजादी का अमृत महोत्सव यानी स्वाधीनता सेनानियों से प्रेरणाओं का अमृत, आजादी का अमृत महोत्सव यानी नए विचारों और नए संकल्पों का अमृत है।
आजादी का अमृत महोत्सव यानी आत्मनिर्भरता का अमृत है। हमारे यहां नमक को कभी उसकी कीमत से नहीं आंका गया, हमारे भारत में नमक का मतलब है ईमानदारी और विश्वास। गांधी जी ने देश के इस पुराने दर्द को समझा, जन-जन से जुड़ी उस नब्ज को पकड़ा और देखते ही देखते यह आंदोलन हर एक भारतीय का आंदोलन और संकल्प बन गया। उस दौर में नमक भारत की आत्मनिर्भरता का एक प्रतीक था। अंग्रेजों ने भारत के मूल्यों के साथ-साथ इस आत्मनिर्भरता पर भी चोट की, भारत के लोगों को इंग्लैंड से आने वाले नमक पर निर्भर हो जाना पड़ा। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम, महात्मा गांधी का विदेश से लौटना, देश को सत्याग्रह की ताकत फिर याद दिलाना, लोकमान्य तिलक का पूर्ण स्वराज्य का आह्वान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का दिल्ली मार्च, दिल्ली चलो का नारा कौन भूल सकता है। प्रदर्शनी में एक ओर स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआत से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक की गाथा और भारत विभाजन का दर्द दिखाया गया। दूसरी ओर गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी कालोजी नारायण राव, टंट्या भील, एनजी चंदावरकर, प्यारे चंद्र मिश्र, सागरमल गोपा, वासुदेव बलवंत फकड़े, महावीर सिंह, चंपक रमन पिल्लई, जगदीश चंद्र बसु, अल्लूरी सीताराम राजू, कोडीकाथ कुमारन, एक नागा, डॉ. महेंद्र सरकार, के. केलप्पन, साधु टीएल वासवानी, पंडित हीरालाल शास्त्री, वीर नारायण सिंह एवं पोट्टी श्रीरामुलु का जीवन वृत्त दिखाया गया। बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, वीर कुंवर सिंह, सहजानंद सरस्वती, अनुग्रह नारायण सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी, मौलाना मजहरूल हक, रामधारी सिंह दिनकर एवं जननायक कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय दिखाया गया है। बिहार के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी पंडित राजकुमार शुक्ल, डॉ. गुलजार प्रसाद, योगेन्द्र शुक्ला, गणेश सिंह, शहीद किशोर ध्रुव, यदुनंदन शर्मा, राम सुभग सिंह, सूरज नारायण सिंह, राम नंदन मिश्र, हरिहर सिंह, रामाधार सिंह, राधा प्रसाद सिंह (दरभंगा) के संघर्ष की गाथा बताई गई। प्रदर्शनी में राधा प्रसाद सिंह (मेघौल, बेगूसराय), रामानंद ब्रह्मचारी, शालिग्राम सिंह, बैद्यनाथ चौधरी, रामर्षिदेव, गुलारी सोनार, कैलाशपति सिंह, परशुराम सिंह, जगलाल चौधरी एवं बैकुंठ शुक्ल के जीवन के संघर्ष को भी बताया गया। कुल मिलाकर कहें तो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने लोगों को ऐसी जानकारी से रूबरू करवा दिया जो आजादी का अमृत युवा पीढ़ी और भविष्य के लिए भी छोड़ गया है।
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