बिहार में थर्मल पावर के बाद ईंट भट्ठों से निकल रहा सर्वाधिक कार्बन
बक्सर: बिहार में कार्बन का सबसे अधिक उत्सर्जन थर्मल पावर प्लांट से होता है. दूसरे स्थान पर ईंट भट्ठे है. ईंट भट्ठे से प्रति वर्ष .6 मिलियन टन कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है. इसका खुलासा बिहार की जलवायु अनुकूल व न्यून कार्बन प्रारूप पर आधारित जारी रिपोर्ट से हुआ है. इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स की टीम ने राज्य में स्थापित 7000 ईंट भट्ठों में से 2000 का सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की. इसमें पाया गया कि बिहार के ज्यादातर भट्ठे संचालन एक लाख लाल ईंट पकाने में लगभग 30 टन कोयला का उपयोग कर रहे है. वहीं दूसरे प्रदेशों में सूबे की तकनीक पर ही आधारित ईंट भट्ठे में टन कोयले का इस्तेमाल कर एक लाख लाल ईंट तैयार की जा रही है.
प्रशिक्षण से कोयले की खपत में तीन गुना आएगी कमी ईंट भट्ठे पर किए गए सर्वे में पाया गया है कि दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार में लाल ईंट पकाने के लिए कोयले की तीन गुना अधिक खपत की जा रही है. राज्य सरकार द्वारा कार्बन को कम करने के लिए नवीनतम तकनीक पर जीकजैक भह्वे का निर्माण कराने का निर्देश दिया गया था. लेकिन लगभग 70 प्रतिशत संचालकों ने लगत तरीके से नवीनतम तकनीक पर बने जीकजैक वाले ईंट भट्टे का निर्माण किया है.
फ्लाई ऐश और बायोमास्क पिकेट से प्रदूषण और लागत में आएगी कमी राज्य के थर्मल पावर से 2023 में लगभग मिलियन मीट्रिक टन फ्लाई ऐश निकला था. इसका उपयोग ईंट बनाने में करने पर 30 से 40 प्रतिशत तक लाल ईंट के उपयोग को कम किया जा सकता है. पंजाब में अनिवार्य कर दिया गया है कि 25 प्रतिशत बायोमास्क पिकेट का उपयोग ईंट पकाने में किया जाएगा. प्रशिक्षण मिलने व बायोमास्क पिकेट का सही तरीके से उपयोग करने पर 6 से 7 टन कोयला में एक लाख लाल ईंट तैयार किया जा सकता है.
ऐसा होने पर जहां ईंट निर्माण के लागत और प्रदूषण में कमी आएगी. वहीं आम लोगों को सस्ते में ईंट मिलेगा.