
सिवानः बिहार की राजनीति में मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammad Shahabuddin) का नाम एक बड़े अल्पसंख्यक नेता के तौर पर लिया जाता है. शहाबुद्दीन कहा हुआ जुमला आज भी लोगों के जेहन में बार बार आता है. उन्होंने कहा था कि मैं यह कहकर जाऊंगा की मुझे सांसो ने हरा दिया, किसी जम्हूरियत ने नहीं हराया, जिंदगी में कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा, यह ख़ुदा का बड़ा करम रहा. दिवंग्त नेता शहाबुद्दीन दो बार एमएलए और चार बार एमपी रहे, लेकिन आज जब उनकी पत्नी (political career of Hina shahab) उन्हीं के नाम पर राजनीति कर रहीं हैं, तो उन्हें सफलता क्यों नहीं मिल पा रही. लोगों का ऐसा मानना है कि ये सब राजनीति का खेल है, जो शुरू से हिना शहाब के साथ खेला गया.
1990 में पहली बार निर्दलीय विधायक बने थे शाहबुद्दीनः आपको दें की पूर्व सांसद मो. शाहबुद्दीन का राजनीतिक सफर 80 के दशक से शुरू हुआ था. पहली बार सिवान के जीरादेई से जेल में बंद रहते हुए सन 1990 में निर्दलीय विधायक बने. यह वो वक़्त था, जब जिले के लोग किसी दूसरे दल के द्वारा काफी परेशान किये जाते थे, उनके जमीन और कारोबार बचाना मुश्किल हो रहा था, वह शहाबुद्दीन ही थे जिन्होंने ने लोहा लिया और जिले के लोगों को चमकता सितारा नजर आया. जिसके बाद जनता ने मो. शाहबुद्दीन को अपना समर्थन दिया और जीरादेई से चुनकर भेजा. इसी क्रम में उनकी मुलाकात लालू यादव से हुई और जनता दल के टिकट पर सन 1995 में फिर दूसरी बार भी विधायक चुने गए.
समर्थकों ने की थी हिना को राज्यसभा भेजने की मांगः सन 1996 से लेकर लगातार 2009 तक यानी चार बार सांसद रहे. लेकिन अब उन्हीं की पत्नी को राजद दरकिनार करके चल रहा है. आपको बता दें कि पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के निधन के बाद जिस तरह लालू परिवार दिल्ली में रहकर 10 मिनट की दूरी तय कर उनकी मिट्टी में शमिल नही हुआ. एक आवाज तक नहीं निकाली. शहाबुद्दीन के समर्थकों का ऐसा मानना है उस वक़्त से लेकर आजतक बीच बीच में तमाम तरह के सवाल उठते रहे. लेकिन माकूल जवाब नहीं मिल सका. आपको बता दें कि हिना शहाब तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़ीं लेकिन लगातार तीनों बार हार का सामना करना पड़ा. हिना ने कभी भी राज्यसभा जाने की बात पार्टी के बड़े नेताओं से नहीं की, क्योंकि जिस शहाबुद्दीन द्वारा लोगों को टिकट बांटा जाता था, उनकी पत्नी अपना टिकट कैसे मांगती. हालांकि उनके समर्थकों ने हिना को राज्यसभा भेजने को लेकर लगातार मांग की लेकिन लालू परिवार के तरफ से अपनी पुत्री को दोबारा राजयसभा भेज दिया गया.
सिवान में चलता था शहाबुद्दीन का सिक्काः शहाबुद्दीन के नाम पर राजद पार्टी एमवाई समीकरण के सहयोग से हमेशा आगे बढ़ता रहा. जब भी लोकसभा चुनाव आता हेना शहाब चुनाव हार जाती और जब भी विधानसभा चुनाव आता एमवाई समीकरण सही हो जाता है. यह राजनीति का ऐसा खेल था जो शुरू से ही खेला जाने लगा, आपको बता दें कि मो. शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब सन 2009 में पहली बार लोकसभा का चुंनाव लड़ीं. लेकिन हार का सामना करना पड़ा. वहीं 2014 और 2019 में भी हिना को पराजित होना पड़ा. हालांकि सिवान में पहले शहाबुद्दीन का ही सिक्का चलता था. लेकिन बिहार में जब से नीतीश की सरकार आई उस वक्त से शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना शुरू हो गया और लोगों की निगाहें हिना शहाब पर टिकी रहीं. जिस हिना शहाब के पति दो बार विधायक और चार बार सांसद रहे हैं, क्या कारण है कि वो एक बार भी लोकसभा नहीं पहुंच सकी. हालांकि हिना शहाब अपने पति शहाबुद्दीन के नाम पर ही राजनीत कर रही हैं लेकिन उन्हें अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है.
चुनाव नहीं जितने का क्या है कारणः दरअसल सिवान से हिना शहाब का चुनाव नहीं जीत पाना जाति एक बड़ा फैक्टर है. लोकसभा चुनाव में जब भी हिना चुनाव लड़ीं तो उस समय हिन्दू-मुस्लिम का कार्ड खेला दिया गया. राजद का वोट बैंक विधानसभा चुनाव में एमवाई समीकरण का ढोल पीटकर भले ही मुस्लिम वोट ले लेता है. लेकिन लोकसभा चुनाव आते ही हिंदू-मुस्लिम हो जाता है. 2009 में हार के बाद फिर 2014 में मोदी लहर ने हिना शहाब को पराजित कर दिया और फिर 2019 में भी हिंदुस्तान-पाकिस्तान की बात हुई. जिसमें हिना को फिर हारना पड़ा. हालांकि शहाबुद्दीन या हिना शहाब शुरू से ही सेक्युलिरजम का राजनीत ही करते रहे हैं लेकिन हाल के दिनों में राजनीति सम्प्रदाय और जातिगत हो गई है. जिसकी वजह से लगातार तीनों बार हिना हार गई. हालांकि इस बार पति के नाम पर हिना भी चाहती थी कि राज्यसभा भेजा जाए लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया. जिसके बाद हिना का बयान भी आया कि 'मैं अभी किसी पार्टी में नही हूं', बिल्कुल न्यूट्रल हूं. जिसके बाद से बिहार की सियासत में कयासों का बजार गर्म है.