मुजफ्फरपुर न्यूज़: बिहार में बिना मान्यता नवीकरण कराए 500 निजी आईटीआई (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) चल रहे हैं. देश में ऐसे आईटीआई की संख्या लगभग आठ हजार है. केंद्र सरकार ने इन्हें मात्र पांच साल के लिए ही मान्यता दी थी, लेकिन संचालकों ने नवीकरण नहीं कराया. अब प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीटी) ऐसे आईटीआई की फिर से मान्यता के नवीकरण कराने की तैयारी कर चुका है.
बिहार न्यूज़ डेस्क सरकारी स्कूलों के एक से आठवीं तक के वार्षिक मूल्यांकन में राज्यभर से 26 लाख 23 हजार 432 बच्चे शामिल नहीं हुए. यह खुलासा बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट की समीक्षा से हुआ है. आठवीं तक में 1,90,04,741 बच्चे नामांकित हैं. इनमें 1,63,81,309 बच्चे ही परीक्षा में शामिल हुए.
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद (एससीईआरटी) की ओर से साल में दो बार वार्षिक मूल्यांकन किया जाता है. कक्षा एक और दो का मौखिक मूल्यांकन और तीन से आठवीं तक की लिखित परीक्षा ली जाती है. दोनों परीक्षाओं की बात करें तो आठवीं तक में बच्चों की उपस्थिति 86 के लगभग रही. सबसे ज्यादा कटिहार जिले के बच्चे अनुपस्थित रहे. यहां से मात्र 36.74 बच्चों ने ही परीक्षा दी है. बेगूसराय के 15.38 बच्चे परीक्षा से अनुपस्थित रहे. पटना जिला में कुल 76,794 (12) बच्चे परीक्षा में शामिल नहीं हुए.
26 लाख बच्चों में 50 फीसदी नहीं आते स्कूल वार्षिक रिपोर्ट की समीक्षा में देखा गया है कि जिन 26 लाख से अधिक बच्चों ने परीक्षा नहीं दी है, उनमें से 50 फीसदी यानी 13 लाख के करीब स्कूल नहीं आते हैं. इनका नामांकन तो होता है, लेकिन ये अनुपस्थिति रहते हैं. यह स्थिति लगभग सभी जिलों की है.
सौ फीसदी को मिलता है योजना का लाभ
राज्य सरकार की ओर से स्कूली बच्चों के लिए चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ सौ फीसदी बच्चों को दिया जाता है. आठवीं तक पोशाक योजना, पुस्तक योजना का लाभ भी इन्हें मिलता है. मुख्यमंत्री पोशाक योजना के तहत आठवीं तक की छात्राओं को 15 सौ और छात्रों को सात सौ रुपये दिये जाते हैं. स्कूल में नामांकित सौ फीसदी छात्रों को वर्ष 2022-23 में इसका लाभ दिया गया है. नामांकित बच्चों की संख्या के आधार मिड डे मील भी बनता है.
एक से आठवीं कक्षा तक की वार्षिक परीक्षा में पटना जिले से 88 फीसदी बच्चे शामिल हुए. जो 12 फीसदी बच्चे शामिल नहीं हुए, उसके लिए स्कूलों से संपर्क किया जाएगा. बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं, इसका कारण जाना जाएगा. - अमित कुमार, डीईओ पटना
वार्षिक मूल्यांकन में शामिल नहीं होने वाले बच्चों को चिह्नित किया जाएगा. उनके स्कूल नहीं आने और वार्षिक या अर्द्धवार्षिक परीक्षा में शामिल नहीं होने के कारणों की समीक्षा होगी. उसी के अनुसार कार्रवाई भी की जाएगी.
- सज्जन आर, निदेशक एससीईआरटी
जानकारी के अनुसार वर्ष 2013 तक देश में जितने भी निजी आईटीआई खुले, उनको मान्यता दी गई. उन्हें अपने संस्थान की मान्यता का नवीनीकरण नहीं कराना था. यानी, केंद्र सरकार ने आईटीआई को केवल मान्यता देते हुए उसे संचालित करने की अनुमति दे दी, लेकिन इसके बाद नियम में बदलाव कर दिए गए. क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया को थर्ड पार्टी बनाते हुए जिम्मा दिया गया कि उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही आईटीआई खुलेंगे. साथ ही जिस किसी आईटीआई को मान्यता दी जाएगी, उसे पांच साल के बाद अपनी मान्यता का नवीकरण कराना होगा. 2013 से 2018 तक यह नियम प्रभावी रहा. इस बीच बिहार में लगभग 500 निजी आईटीआई खुल गए. जो भी संस्थान खुले, सबकी मान्यता इन पांच वर्षों में समाप्त हो गई है. लेकिन बिना नवीकरण के ही अब भी इसका संचालन हो रहा है. हालांकि इनकी मान्यता समाप्त नहीं होने के कारण इसमें अध्ययनरत छात्रों पर इसका कोई असर नहीं होगा. पिछले दिनों डीजीटी ने इस विषय पर मंथन किया. तय किया गया है कि बिहार सहित देशभर के ऐसे आईटीआई को मान्यता का नवीकरण कराने के लिए कहा जाएगा. ऐसा नहीं करने वालों की मान्यता समाप्त कर दी जाएगी.
डीजीटी की मंशा है कि हर पांच साल में मान्यता नवीकरण कराने से यह पता चल सकेगा कि आईटीआई में प्रशिक्षणार्थियों को किस तरह की सुविधा दी जा रही है. बिहार में ऐसे सैकड़ों निजी आईटीआई की भरमार है, जहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है.
एक ही परिसर में एक से अधिक आईटीआई चल रहे हैं
पटना, गया, छपरा, वैशाली, औरंगाबाद, भोजपुर, बक्सर, मुजफ्फरपुर, भागलपुर जैसे जिले में बिना मान्यता प्राप्त आईटीआई की संख्या सैकड़ों में है. सबसे अधिक पटना-गया रोड पर इस तरह के आईटीआई दिखते हैं. एस्बेस्टस से बने दो-तीन कमरों के भवन में आईटीआई खुले हुए हैं. कई संचालकों ने तो एक ही परिसर में एक से अधिक आईटीआई खोल रखे हैं. इनका मकसद केवल पैसा उगाही करना है. बिना संसाधन के ही चल रहे आईटीआई छात्रों से मोटी फीस वसूलते हैं.