पटना : पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) में राज्य सरकार द्वारा बिहार में जाति आधारित सर्वे कराने को लेकर (Caste Census In Bihar) लिए गए निर्णय को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई है. ये याचिका शशि आनंद द्वारा अधिवक्ता जगन्नाथ सिंह के जरिये दायर की गई है. याचिका में राज्य के राज्यपाल के आदेश से उक्त आशय को लेकर 06 जून, 2022 को जारी मेमो नंबर- 9077 और राज्य सरकार के उप सचिव के हस्ताक्षर से राज्य के मंत्रिपरिषद में 2 जून, 2022 को लिए गए निर्णय को की गई अधिसूचना को चुनौती दी गई है.
भारत के संविधान का दिया गया हवाला : याचिकाकर्ता का कहना है कि बिहार सरकार द्वारा कंटीजेंसी फण्ड से अपने स्रोत से पांच सौ करोड़ रुपए खर्च करके जाति आधारित सर्वे करवाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 267 (2) के प्रावधानों का उल्लंघन है. याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि कंटीजेंसी फण्ड का उपयोग अप्रत्याशित स्थिति में किया जाना चाहिए.
जातीय जनगणना पर 500 करोड़ होंगे खर्च : बता दें कि बिहार में जातीय जनगणना की स्वीकृति दे दी गई. फरवरी 2023 तक जाति आधारित गणना पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. इस पर 500 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया है. सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जातीय जनगणना कराने के लिए दिशा निर्देश भी जारी (Guidelines For Caste Census In Bihar) कर दिया गया है.
एक जून को हुई थी सर्वदलीय बैठक: मुख्यमंत्री सचिवालय संवाद में सर्वदलीय बैठक में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल, उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद, जदयू के तरफ से संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी, मंत्री विजेंद्र यादव, मंत्री श्रवण कुमार. वहीं, कांग्रेस के तरफ से अजीत शर्मा हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा की ओर से पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, माले के तरफ से महबूब आलम, सीपीआई के अजय कुमार सहित सभी 9 दलों के नेता शामिल हुए थे. जिन दलों के विधायक विधानसभा में नहीं है, उन्हें नहीं बुलाया गया था और उसी में तय हुआ था कि कि कैबिनेट से स्वीकृति ली जाएगी और आज उसकी स्वीकृति ले ली गई है. अब इस पर काम शुरू हो जाएगा.
यहां उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि सरकार जातीय जनगणना नहीं कराने जा रही है. वहीं राज्यों को ये छूट मिली है कि अगर वो चाहें तो अपने खर्चे पर सूबे में जातीय जनगणना करा सकते हैं. वहीं बिहार में लगभग सभी दल एकमत हैं कि प्रदेश में जातीय जनगणना होनी चाहिए. भाजपा ने इसे लेकर केंद्र के फैसले के साथ खुद को खड़ा रखा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हाल में ही इस मुद्दे पर मुलाकात की थी. सीएम लगातार जातीय जनगणना के पक्ष में बयान देते रहे हैं. जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव की पहल पर ही पिछले साल 23 अगस्त को नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से शिष्टमंडल मिला था लेकिन केंद्र सरकार ने साफ मना कर दिया है.जातीय जनगणना को लेकर सरगर्मी तेज: बिहार में वोट के लिहाज से ओबीसी और ईबीसी बड़ा वोट बैंक है. दोनों की कुल आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है. और इसमें सबसे अधिक यादव जाति का वोट है जो 13 से 14% के आसपास अभी मान जा रहा है. जहां तक जातियों की बात करें तो 33 से 34 जातियां इस वर्ग में आती है. ऐसे तो जातीय जनगणना सभी जातियों की होगी लेकिन जेडीयू और आरजेडी की नजर ओबीसी और ईबीसी जाति पर ही है. दोनों अपना वोट बैंक इसे मानती रही है.
1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ: 1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ है. इसलिए अनुमान पर ही बिहार में जातियों की आबादी का प्रतिशत लगाया जाता रहा है. बिहार में ओबीसी में 33 जातियां शामिल है तो वही ईबीसी में सवा सौ से अधिक जातियां हैं. ओबीसी और ईबीसी की आबादी में यादव 14 फीसदी, कुर्मी तीन से चार फीसदी, कुशवाहा 6 से 7 फीसदी, बनिया 7 से 8 फीसदी ओबीसी का दबदबा है. इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कानू, गंगोता, धानुक, नोनिया, नाई, बिंद बेलदार, चौरसिया, लोहार, बढ़ई, धोबी, मल्लाह सहित कई जातियां चुनाव के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं.