बिहार

अब नई तकनीक से होगी पाटलिपुत्र सीमा की खोज, बिहार सरकार का फैसला, IIT कानपुर करेगा मदद

Renuka Sahu
10 Jun 2022 4:32 AM GMT
Now Patliputra border will be discovered with new technology, Bihar governments decision, IIT Kanpur will help
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फाइल फोटो 

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने अब नई तकनीक से प्राचीन पाटलिपुत्र और इस इलाके के पुरावशेषों की खोज का फैसला किया है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने अब नई तकनीक से प्राचीन पाटलिपुत्र और इस इलाके के पुरावशेषों की खोज का फैसला किया है। यह खोज बिहार विकास विरासत समिति आईआईटी कानपुर के सहयोग से पूरी होगी। हालांकि, पुरातन पाटलिपुत्र के कोर इलाके में आबादी ऐसे बस गई है कि पुरातात्विक उत्खनन मुमकिन नहीं है। कल संस्कृति विभाग ने ग्राउंड पेनिट्रेनिंग रडार सर्वे ( जीपीआर) कराने का फैसला किया है। यह सर्वे आईआईटी कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के हेड जावेद मलिक और उनकी टीम करेगी।

बिहार विरासत समिति के कार्यपालक निदेशक विजय कुमार चौधरी ने बताया कि विभाग ने वर्क ऑर्डर भी दे दिया है और आईआईटी कानपुर के लिए 8.5 लाख भी स्वीकृत हो गए हैं। खास बात है कि इस सर्वे के दौरान मशीन के माध्यम से जमीन के भीतर तरंगे जाएंगी और जहां पुरावशेष होंगे, उसे इंगित करेंगी। संभावनाओं वाले सारे इलाके चिन्हित कर लिए जाएंगे।
बड़ा है पाटलिपुत्र का इतिहास
बता दें कि पाटलिपुत्र का इतिहास, भारत का इतिहास है लेकिन अभी तक पाटलिपुत्र के पुरातात्विक साक्ष्य बहुत कम मिले हैं। सातवीं सदी में भारत आए चीनी यात्री ह्नेनसांग के यात्रा वृतांत हो या इसके आधार पर 1870 में एलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा कराए गए उत्खनन हो, प्राचीन पाटलिपुत्र के यही थोड़े बहुत साक्ष्य हैं। पुराविदों का अनुमान है कि प्राचीन पाटिलपुत्र के अवशेष जमीन से 25-30 फीट नीचे हैं। ऐसे में अब भी पुराविदों और दुनिया की जिज्ञासा अपनी जगह बनी है कि प्राचीन पाटलिपुत्र कहां था? इसकी सीमा कहां से कहां तक थी ?
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