2008 के बम धमाके के बाद काजवलीचक आकर रहने लगे। पिता ने यहीं जमीन खरीद कर मकान बनाया था। जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, मायागंज के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती 40 साल की शीला देवी को सुकून है उनका बेटा होश में आ गया है। शुक्रवार को उन्होंने राहत कि सांस ली। मलबे में दबा उनका बेटा अब स्वस्थ है। गम इस बात का है कि 10 मिनट के धमाके ने उन्हें बेघर कर दिया। पूर्वजों की जिस निशानी को उन्होंने पाई-पाई कर संवारा था वो अब मलबा रह गई है।
शुक्रवार की रात 2 बजे वो घर के मंजर को बयां कर ही रही थी कि उनके पास बैठा उनका बेटा सुमित फफक पड़ता है। उसकी आवाज में गुस्सा और फिक्र है कि उनका 12 सदस्यीय परिवार बिना किसी गलती के सड़क पर आ गया। वह अब कैसे रहेगा? हॉस्पिटल से निकल कर कहां जाएगा? किराना दुकान की बचत से घर की जिम्मेदारी चलाने वाले उसके पिता किराया कहां से लाएंगे? इस संबंध में भागलपुर के जिला पदाधिकारी से भी जानकारी जुटाने की कोशिश की। उन्हें कॉल और मैसेज किए। लेकिन न ही उन्होंने फोन कॉल रिसीव किया और न ही खबर लिखे जाने तक मैसेज का जवाब दिया था। उनका पक्ष आते ही हम यहां उसकी भी जानकारी देंगे।