अपनीबात : इस समय भारत की ओर सारा विश्व आशा से देख रहा है। यह केवल इसकी अर्थव्यवस्था तक ही सीमित नहीं है। वैश्विक स्तर पर केवल भारत से ही यह अपेक्षा की जा रही है कि वह यूक्रेन-रूस युद्ध को रुकवा सकता है। हालांकि इसके साथ-साथ एक चिंताजनक स्थिति भी बनी है। वह यह कि देश की राजनीति और राजनीतिक दलों के मध्य संवाद, सहयोग और संवेदना लगभग पूरी तरह अनुपस्थित हो चुकी हैं। जो सत्ता में रह चुके हैं, वे वहां पहुंचने की बहुत जल्दी में हैं, लेकिन इसके लिए व्यवस्थित प्रयास करने के स्थान पर वे निराश और हताश को ही व्यक्त करते रहते हैं।
अपरिग्रह को लोकसेवक का आभूषण माननेवाले महात्मा गांधी के देश में अपने को उनकी विरासत का उत्तराधिकारी घोषित करने वाले नेता जब सत्ता में आए तो इस तथ्य को भूल गए। वे गांधी के मूल्यों से अलग हट गए। जनसेवा के स्थान पर अपनी और अपने परिवार की सेवा तक सीमित हो गए। उनमें से अधिकांश संग्रहण की चकाचौंध में इस तरह घिरे कि उनकी पीढ़ियां भी उसी राह पर आगे बढ़ीं। अनेक ऐसे परिवार राजनीति में उभरे, जिन्होंने सत्ता में पहुंचकर अकूत धन संग्रह किया, उनकी अगली पीढ़ी ने वह शान-ओ-शौकत और रुतबा देखा और सत्ता में पहुंचने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मान लिया।