धर्म-अध्यात्म

श्राद्ध में क्यों किया जाता है मां लक्ष्मी का पूजन

Bharti sahu
14 Sep 2022 10:30 AM GMT
श्राद्ध में क्यों किया जाता है मां लक्ष्मी का पूजन
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Why Maa Lakshmi is worshiped in Shradh

पितृपक्ष के श्राद्ध शुरु हो चुके हैं। शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में कोई भी कार्य करना बहुत ही शुभ माना जाता है। पितृपक्ष के समय में नई वस्तुएं खरीदना, नए कपड़े पहनना, विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश जैसे कार्य भी वर्जित माने गए हैं। लेकिन पितृपक्ष के इन दिनों में अश्विन कृष्णपक्ष की अष्टमी का दिन विशेष रुप से शुभ माना जाता है। इस बार पितृपक्ष में आने वाली अष्टमी तिथि 18 सितंबर के दिन पड़ रही है। इस तिथि को महालक्ष्मी जी का वरदान प्राप्त है। पूरे पितृपक्ष के दौरान एक मात्र अष्टमी तिथि ही ऐसी होती है, जिस दिन आप सोना खरीद सकते हैं तथा जरुरत पड़ने पर शादी की खरीदारी के लिए भी यह तिथि उपयुक्त मानी जाती है।

अष्टमी तिथि के दिन की जाती है गजलक्ष्मी की पूजा
शास्त्रों के अनुसार, इस दिन हाथी पर सवार माता लक्ष्मी के गजलक्ष्मी रुप की पूजा-अर्चना करके उनका व्रत किया जाता है। अश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी कहकर संबोधित किया जाता है।
श्राद्ध में क्यों किया जाता है मां लक्ष्मी का पूजन
सनातन धर्म में शब्द महालय का अर्थ होता है पितृ और देव मातामह की युति का पूजन। शास्त्रों में विशेष रुप से अश्विन मास के दोनों पक्ष पितृ और देवी पूजन के लिए व्यवस्थित किए गए हैं। महालय को पितृ पक्ष की समाप्ति और देवी पक्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि आदिशक्ति लक्ष्मी के रुप में महालय काल के दौरान पृथ्वी पर अपनी यात्रा समाप्त कर दोबारा से अश्विन महीने की शुक्ल एकम नवरात्र की स्थापना से अपनी यात्रा शुरु करती हैं अर्थात अगर आसान शब्दों में कहें तो महालय पितृगण और देव गण को जोड़ने वाली एक कड़ी होती है तथा देव की कृपा के बिना पितृत्व में मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। इस दिन अष्टमी तिथि का श्राद्ध पूर्ण करके अपने जीवित पुत्र की सफलता के लिए लोग कालाष्टमी का व्रत करके महालक्ष्मी का व्रत पूर्ण करते हैं। शास्त्रों में इस अष्टमी को अशोकाष्टमी कहकर संबोधित किया जाता है। जिस अष्टमी का व्रत करने पर शोक और दुख से निवृत्ति मिलती है उसे ही शास्त्रों में अशोकाष्टमी कहते हैं।
कैसे करें महालक्ष्मी की पूजा?
प्रदोषकाल के समय में स्नान कर घर की पश्चिम दिशा में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसके बाद उस पर केसर मिले चंदन से अष्टदल बनाकर उस पर चावल रखा हुआ एक जल से भरा कलश रख दें। कलश के पास हल्दी से कमल बनाकर उस पर मां लक्ष्मी की मूर्ति रखें। इसके बाद मिट्टी का हाथी बाजार से लाकर या फिर घर में बनाकर उसे स्वर्णाभूषणों के साथ सजाएं। नया खरीदा हुआ सोना हाथी पर रखने से पूजा का विशेष लाभ मिलता है। माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने एक श्रीयंत्र रखें। कमल के फूल से पूजा करें। इसके अलावा पूजा में सोने चांदी के सिक्के, मिठाई और फल भी जरुर रखें। इसके बाद मां लक्ष्मी के आठ रुपों की इन मंत्रों के साथ पूजा करें। अक्षत, कुमकुम और फूल चढ़ाते हुए मां लक्ष्मी की पूजा करें।
इन मंत्रों का करें जाप
ऊं आद्यलक्ष्मयै नम:। ऊं विद्यालक्ष्मयै नम:। ऊं सौभाग्यलक्ष्मयै नम:। ऊं अमृतलक्ष्मयै नम:। ऊं कामलक्ष्मयै नम:। ऊं सत्यलक्ष्मयै नम:। ऊं भोगलक्ष्मयै नम:। ऊं योगलक्ष्मयै नम:।। इन मंत्रों के जाप के बाद धूप और दी से पूजा कर भोग लगाएं और महालक्ष्मी जी की आरती करें।


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