असम
अदालत का बड़ा आदेश, मदरसों में दी जा रही मजहबी शिक्षा पर सरकार के फैसले को बताया जायज़
Deepa Sahu
5 Feb 2022 2:35 PM GMT
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असम के गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 4 फरवरी (शुक्रवार) को अपने फैसले में कहा कि सरकार से फंड लेने वाले शिक्षण संस्थान मजहबी शिक्षा नहीं दे सकते।
गुवाहाटी: असम के गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 4 फरवरी (शुक्रवार) को अपने फैसले में कहा कि सरकार से फंड लेने वाले शिक्षण संस्थान मजहबी शिक्षा नहीं दे सकते। उच्च न्यायालय ने राज्य के वित्तपोषित तमाम मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदलने के असम सरकार के फैसले को जायज़ ठहराते हुए, मदरसों के लिए भूमि देने वाले 13 मुत्तवली (दानदाता) की याचिका को खारिज कर दिया।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने विधानसभा में असम रिपीलिंग एक्ट-2020 पास करते हुए इस कानून के आधार पर सरकारी मदद प्राप्त मदरसों को विद्यालयों में बदलने का फैसला लिया था। इस ऐक्ट के तहत मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम- 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवाओं का प्रांतीयकरण तथा मदरसा शैक्षिक संस्थानों का पुनर्गठन) अधिनियम- 2018 को समाप्त कर दिया गया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि विभिन्न धर्मों वाले देश में सरकार को धार्मिक मामलों में तटस्थ रहना चाहिए। अदालत ने आगे कहा कि, 'हम लोकतंत्र में और संविधान के अंतर्गत रहते हैं, जहाँ प्रत्येक नागरिक बराबर है। इसलिए हमारे जैसे बहुधर्मी समाज में राज्य द्वारा किसी एक धर्म को वरीयता देना देश के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। इस तरह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रकृति है कि वह सुनिश्चित करे कि सरकार द्वारा वित्तपोषित किसी भी संस्थान में धार्मिक शिक्षा न दी जाए।' यह संविधान के 28(1) के अनुकूल नहीं है।
साथ ही हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया की बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि जो विधायिका और कार्यपालिका द्वारा बदलाव किया गया है, वह सिर्फ सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों के लिए है, न कि प्राइवेट या सामुदायिक मदरसों के लिए। इसके साथ ही अदालत ने एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
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